हिन्दी सिनेमा में ब्राह्मणवाद और दलित मुक्ति के संदर्भ 2
भारतीय समाज में निहित जटिलताओं को कहीं ज्यादा सूक्ष्मता से चित्रित उन फ़िल्मकारों ने किया है जिन्होंने यथार्थवादी परंपरा से अपने को जोड़ा है। 1970 के लगभग भारतीय सिनेमा में यथार्थवाद की जो नयी लहर उभरी उसने दलित समाज की समस्याओं को भी अपना विषय बनाया। श्याम बेनेगल ने आरंभ से ही इस ओर ध्यान दिया है। ‘अंकुर’ (1973), ‘मंथन’ (1976) और ‘समर’ (1998) में उन्होंने दलित समस्या को अपनी फ़िल्मों का विषय बनाया है।