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मीना कुमारी और ‘पाकीज़ा’ की कुछ अनकही 

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हिंदी फिल्मों की ट्रैजेडी क्वीन कही जाने वाली मीना कुमारी की पुण्य तिथि (31 मार्च) पर उन्हे याद कर रहे हैं लेखक अजय कुमार शर्मा। बुलंदशहर में जन्मे और बरेली में शिक्षा प्राप्त किएअजय कुमार शर्माने भारतीय जनसंचार संस्थान,दिल्लीसेहिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा किया और हिंदी की पहली वीडियो समाचार पत्रिका “कालचक्र ” में कार्य के बाद लंबे समय तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शोध संयोजन, पटकथा एवं निर्देशन सहयोग किया। चार दशकों से देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में साहित्य, संस्कृति, नाटक, इतिहास, सिनेमा और सामाजिक विषयों पर वो निरंतर लेखन करते रहे हैं।पिछले दो वर्षों से सिनेमा पर साप्ताहिक कॉलम “बॉलीवुड के अनकहे किस्से” का नियमित प्रकाशन हो रहा है। वर्तमान में वो दिल्ली के साहित्य संस्थान में संपादन कार्य से जुड़े हैं।

‘पाकीज़ा’ मीना कुमारी और कमाल अमरोही  द्वारा देखा गया ऐसा  सृजनात्मक सामूहिक सपना था जिसे पूरा करने में अनेकों रुकावटें आईं लेकिन मीना कुमारी ने इसे पूरा करके ही अपनी देह छोड़ी। फ़िल्म पाकीज़ा का मुहूर्त उनके जन्मदिन पर  17 जनवरी 1957 को किया गया था और फिल्म 4 फरवरी 1972 को रिलीज़ हुई। इन 15 वर्षो में  सात साल ऐसे है जब फिल्म पूरी तरह बंद रही। फ़िल्म ‘एक वेश्या भी मन से पवित्र हो सकती है’ के विचार को लेकर बनाई गई थी। अन्य विवादों के अलावा कमाल अमरोही और उनकी पत्नी मीना कुमाही जो फिल्म की नायिका थीं के बीच का मन मुटाव भी  फिल्म की देरी का मुख्य कारण था। हाँलाकि फिल्म के गीत मौसम है आशिकाना की रिकार्डिंग के समय वहाँ उपस्थित एक ज्योतिषी जिनका नाम चार्ली था ने कमाल अमरोही को यह फिल्म न बनाने की सलाह दी थी। उसका कहना था कि यह  फिल्म आप पूरी नहीं कर पाएंगे। इसमें  बहुत मुश्किलें आएंगी। कमाल अमरोही ने ज्योतिषी को चुनौती देते हुए कहा कि यदि में फ़िल्म पूरी करके दिखा दूं तो क्या होगा? इस पर ज्योतिषी  का जवाब था कि तब तो यह फिल्म अमर हो जाएगी।

उस समय तो बात आई गई हो गयी लेकिन सचमुच कमाल अमरोही को  हजारों रुकावटें आई। कई सितारों को बदला गया और उनके हिस्सों  की शूटिंग बार-बार की गई। पहले फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट बनाई जा रही थी लेकिन मीना कुमारी  के कहने  पर रंगीन  बनाने के कारण कई गाने फिर फिल्माए गए। इस फिल्म में फिल्माए गए गीत यादगार थे। ठाड़े रहियो , इन्हीं लोगों ने और चलते-चलते ये तीन गीत एक साल में शूट  किए गए थे। पहले कमाल अमरोही ने खुद ही नायक की भूमिका करने का फ़ैसला किया था और अन्य भूमिकाओं के लिए सप्रू, मेहताब, कमल कपूर, प्रतिमा देवी आदि कलाकारों को चुना गया था। लेकिन कुछ ही दिन के शूट में उन्हें लग गया कि अभिनय उनके बस की बात नहीं तो फिर अशोक कुमार को लिया गया। इस बीच डेढ़ साल में कोठे का सेट बनकर तैयार हुआ फिल्मिस्तान स्टूडियो में। पटकथा में रोज़ बदलाव होते तो सितारे भी बदलने लगे। एक नायक की  जगह दो नायक हुए।राजेंद्र कुमार ने माना किया तो सुनील दत्त से बात की गई , उन्होंने भी मना कर दिया तो फिर धर्मेंद्र को यह रोल दिया गया और उन पर कई शॉट फिल्माए गए। इसके बाद मीना कुमारी द्वारा कमाल का घर छोड़कर अलग रहने के कारण फ़िल्म लंबे समय को बंद हो गई।

आख़िर सात साल के लंबे समय के बाद शूटिंग फिर शुरू हुई तो धर्मेंद्र की जगह राजकुमार को लिया गया। मीना कुमारी की सहेली के रूप में सोहराब मोदी की पत्नी  मेहताब के साथ काफी शूटिंग के बाद उनकी जगह नादिरा को लिया गया और उनके द्वारा नखरे दिखाने पर उनका रोल कम किया गया तथा उसकी भरपाई के लिए एक पात्र और जोड़ा गया। इस बीच मीना कुमारी की तबीयत खराब रहने के कारण  कई बार शूटिंग की सारी तैयारी करने के बाद भी शूटिंग कैंसिल कर दी जाती थी। राजकुमार की सनक से भी शूटिंग में देर हुआ करती थी। एक बार तो कमाल अमरोही को उनके खिलाफ इंपा में शिकायत करनी पड़ी और नोटिस भी भिजवाना पड़ा । इधर अमरोही साहब भी एक एक शॉट के लिए  कई कई महीने लगाते, और उसको बिल्कुल संतुष्ट हो जाने के बाद ही ओके करते । 

यह तो गनीमत थी की फ़िल्म के 14 गीत जो अपनी मिसाल आप थे फ़िल्म बनने के आरंभ में ही गुलाम हैदर साहब से रिकार्ड करवा लिए गए थे। आख़िर किसी तरह फ़िल्म बनी और बेहद सफ़ल रही ..लेकिन मीना कुमारी इसकी सफलता न देख सकीं। फ़िल्म रिलीज़ होने के दो महीनों के अंदर ही उनकी मृत्यु हो गई थी।

चलते-चलते

मीना कुमारी को बासी रोटी बेहद पसंद थी। उन्हें भीड़ और शोर नापसंद था। बिल्ली से उन्हें बहुत डर लगता था। उन्हें पत्थर के छोटे टुकड़े  जमा करने का भी शौक था। जब भी वे आउटडोर  शूटिंग पर जाती तो पत्थरों को बीन कर लाती और अपने बिस्तर के पास ही टेबल पर सजा कर रखतीं। जो पत्थर ज्यादा पसंद आते उन्हें अपने सिरहाने रख लेती थीं। घर आए लोगों को उनसे मिलवाती भी थी यह कहते हुए, देखो  यह कितने उदास हैं…