मिनारी: अनजाने सुख की खोज और उसकी पहचान का सफ़र

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A still from Minari
Amitabh ji
Amitaabh Srivastava

कोरियाई भाषा में बनी अमेरिकी फिल्म मिनारी की इस साल ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब और बाफ्टा अवॉर्ड्स में खासी धूम रही। गोल्डन ग्लोब में इसने बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म का अवॉर्ड जीता तो बाफ्टा और ऑस्कर में इस फिल्म को 6-6 नामांकन मिले और दोनों ही अवॉर्ड्स समारोह में फिल्म की कोरियाई अभिनेत्री यह-जंग यून को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के तौर पर चुना गया। आखिर क्या है खास इस फिल्म में… और कैसे ये फिल्म कहीं न कहीं हमारे देश.. हमारे समाज और हमारे समय की आकांक्षाओं और उसे पूरा करने की जद्दोजहद से जुड़ती है। एनडीएफएफ के अध्यक्ष अमिताभ श्रीवास्तव की हिंदी समीक्षा…

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित फिल्म मिनारी वैसे तो अमेरिका में रह रहे एक कोरियाई परिवार की कहानी है लेकिन यह हमारे समय की सार्वभौमिक कथा है जिसका संदेश भाषाओं और सरहदों के दायरे से परे सहज मानवीयता और सकारात्मक जीवन मूल्यों के बारे में है। यूपी, बिहार के छोटे शहरों से निकला कोई मध्यवर्गीय युवा दंपति दिल्ली-मुंबई में अपने माता-पिता से अलग रहते हुए कामयाबी के सपनों, महत्वाकांक्षांओं की दौड़ में जो कुछ झेलता है , वह मिनारी के कोरियाई किरदारों से मिलताजुलता ही लगेगा। इस फ़िल्म को प्रवासियों का अमेरिकी स्वप्न (The American Dream) कह कर भी खूब प्रचारित किया गया है लेकिन यह एक सीमित दृष्टिकोण है। पूरी तरह ऐसा है नहीं।

यह जिस कोरियाई-अमेरिकी परिवार की कहानी है, सिर्फ उसका मुखिया जैकब ही अमेरिकी रंग-ढंग, सोच, कामयाबी, पैसों के पीछे पगलाया हुआ है और फार्मिंग करके ज़्यादा पैसा कमाने के लिए पूरे परिवार को कैलिफ़ोर्निया से अरकांसास ले आया है और बड़े से फ़ार्म के बीच खड़ी एक गाड़ी में बने कामचलाऊ क़िस्म के ढाँचे में ठहरा दिया है। । जैकब के लिए पैसा, उसकी निजी महत्वाकांक्षा, कामयाबी की भूख, अमेरिकी समाज में हैसियत बनाना ही सब कुछ है। वह अमेरिकी लोगों की तरह टोपी लगाता है, काउब्वाय जूते पहनता है, उन्हीं की तरह क़मीज़ की जेब में सिगरेट की डिब्बी रखता है। उसे लगता है ज़्यादा पैसा मतलब ज़्यादा सुरक्षा। उसकी पत्नी मोनिका अपेक्षाकृत ज़्यादा संतुलित महिला है। उसकी दृष्टि में परिवार ज़्यादा महत्वपूर्ण है। उसके बेटे डेविड के दिल में छेद है और उसकी सेहत, इलाज और देखभाल को लेकर वह जैकब के मुक़ाबले ज़्यादा चिंतित दिखती है।

फ़िल्म के शुरुआती हिस्से में ही जैकब और उसकी पत्नी , उसके बेटे के बीच संवाद में दिख जाता है कि जैकब की सोच किस क़दर भौतिकतावाद और उपयोगितावाद से प्रभावित है। पत्नी कहती है पाँच एकड़ जंमीन से भी काम चल जाता । जैकब के सिर पर पचास एकड़ के फ़ार्म में खेती करने की धुन सवार है। नन्हा डेविड माँ-बाप को मुर्ग़ियों के चूज़ों में से नर-मादा चुन-चुन कर अलग-अलग टोकरियों में रखते देखता है । नर चूज़ों को बेकार बताये जाने पर पूछता है- बेकार क्या होता है? जैकब कहता है – नर चूज़े अंडे नहीं दे सकते, उनका ज़ायक़ा भी अच्छा नहीं होता इसलिए वो किसी काम के नहीं हैं। जो उपयोगी नहीं है, वह सब बेकार है।
जीवनशैली को लेकर,पैसे को लेकर जैकब-मोनिका में तीखी बहसें होती रहती हैं। सहमे बच्चे दूर से काग़ज़ के हवाई जहाज़ बना-बनाकर उन तक फेंकते हैं जिन पर लिखा होता है- झगड़ो मत।

ऐसे माहौल में कहानी में दाख़िल होती है मोनिका की माँ सून्जा । बेटी से मिलती है तो उसे पिसी हुई मिर्च का पैकेट देती है, सूखी हुई मछलियाँ देती है। ख़ुश बेटी कहती है यह सब यहाँ नहीं मिलता। वह माँ के सामने अपने वर्तमान हालात पर शर्मिंदा होती है, अपने घर के बारे में झेंपती है तो माँ दिलासा देते हुए कहती है- क्यों , क्या सिर्फ इसलिए कि उसमें पहिए लगे हैं? माँ अपनी बेटी के हालात भाँप कर उसे पैसे भी देती है। नन्हा डेविड अपनी माँ और नानी की यह बातचीत बालसुलभ उत्सुकता के साथ सुनता है। नानी कहती है मैंने सुना है अमेरिकी बच्चे अपना कमरा साझा नहीं करते। मोनिका प्रतिवाद करती है- मेरा बच्चा अमेरिकी नहीं, कोरियाई है। डेविड को नानी से कोरिया की गंध आती है। नानी के साथ कमरा साझा करना उसे अच्छा नहीं लगता। नानी को लेकर अपनी नापसंदगी भी वह साफ़ जता देता है। माँ के कान में कहता है- यह नानी जैसी तो लगती ही नहीं। चिढ़ कर नानी को सूप के प्याले में अपना पेशाब पिला देता है और शरारत से पूछता है- ज़ायक़ा कैसा था?

'मिनारी' हमारे समय की सार्वभौमिक कथा है जिसका संदेश भाषाओं और सरहदों के दायरे से परे सहज मानवीयता और सकारात्मक जीवन मूल्यों के बारे में है।

नानी और नाती की इस नोकझोंक के बीच पनपती आत्मीयता और उसके माध्यम से मानवीयता और सहजता का संदेश फ़िल्म का सबसे प्यारा, आनंददायक और सार्थक पक्ष है। नानी अपने नाती को खेत मे ले जाकर दूर एक कोने में कोरियाई पौधे मिनारी के बीज बोती है। उसे बताती है कि मिनारी बहुत स्वादिष्ट होती है , कहीं भी उगाई जा सकती है , कोई भी इसे खा सकता है। दवा की तरह भी इस्तेमाल होती है। बच्चा पेड़ पर रेंगते साँप को पत्थर से मारना चाहता है तो नानी उसे रोकती है। कहती है, उसे सामने आने दो। कहती है – छिपी हुई चीज़ें ज़्यादा ख़तरनाक और डरावनी होती हैं। डेविड दिल का मरीज़ है, नानी सून्जा उसे चलाती है, दौड़ाती है । डाक्टर कहते हैं डेविड की हालत पहले से बहुत बेहतर हो गई है। जैकब के खेत में सून्जा की ग़लती से आग लग जाती है। सब नष्ट हो जाता है। बचती है तो केवल किनारे किनारे नमी में उगी हुई मिनारी

Yuh-Jung Youn

फ़िल्मकार ने मिनारी को एक रूपक के तौर पर अपनी जड़ों , परंपराओं और जीवन मूल्यों का प्रतीक बताने का प्रयास किया है।

सून्जा का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री यह-जंग यून ने कमाल का काम किया है। उन्हें अपने अभिनय के लिए इस साल ऑस्कर पुरस्कार मिला है।
फिल्म अमेज़न प्राइम पर उपलब्ध है । अंग्रेज़ी सबटाइटिल्स के साथ। अच्छे सिनेमा का शौक हो और फ़ुर्सत मिले तो देख सकते हैं।

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