सिनेमा में साहित्य के ‘ढाई आखर’ की सार्थक वापसी

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जवरीमल्ल पारख साहित्य, सिनेमा और मीडिया पर आलोचनात्मक लेखन एव पटकथा के विशेषज्ञ हैं। ‘लोकप्रिय सिनेमा और सामाजिक यथार्थ’, ‘हिंदी सिनेमा का समाजशास्त्र’, ‘साझा संस्कृति, सामाजिक आतंकवाद और हिंदी सिनेमा’ समेत साहित्य और समाजशास्त्र से जुड़े कई विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित और सम्मानित हो चुकी हैं। 
दिनेश लखनपाल  लेखक-पत्रकार-फिल्मकार हैं। लंबे अरसे तक हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप से जुड़े रहे, कादंबिनी पत्रिका के लिए काम किया। फिर मुंबई में सिनेमा से जुड़े। फिल्म स्पर्श (1980), चश्मेबद्दूर (1981) में डायरेक्टर सईं परांजपे के साथ बतौर सहायक निर्देशक किया। फीचर फिल्म अंतहीन का निर्देशन किया। 70 से अधिक डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाईं। दो राष्ट्रीय, कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त। लघु फिल्मों और वृत्तचित्र निर्माण में संलग्न।

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