KIFF 2024 रिपोर्ट 2: दिल और दिमाग से उपजा सिनेमा
Kolkata International Film Festival भारत का दूसरा सबसे बड़ा फिल्म फेस्टिवल कहा जाता है। बुधवार 4 नवंबर को उद्घाटन के बाद इसकी शुरुआत हो चुकी है। 5 नवंबर से फिल्मों की स्क्रीनिंग चालू है। कोलकाता वैसे भी संस्कृतिप्रेमी शहर है, इसलिए न सिर्फ कोलकाता बल्कि इसपूरे क्षेत्र के सिनेमाप्रेमियों के लिए ये एक उत्सव की तरह होता है। इस बार के फेस्टिवल के प्रमुख आकर्षणों में से एक फिल्मकार गौतम घोष की नई फिल्म परिक्रमा का प्रदर्शन भी है। इसके साथ ही जॉय मुखर्जी के बेटे सुजॉय मुखर्जी की शॉर्ट फिल्म और अभिनेत्री विद्या बालन के बांग्ला सिनेमा कनेक्शन के बारे में इस आलेख के माध्यम से बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जयनारायण प्रसाद, जो इंडियन एक्सप्रेस समूह के अखबार जनसत्ता कलकत्ता में 28 सालों तक काम करने के बाद रिटायर होकर कलकत्ता में ही रहते हैं और सांस्कृतिक गतिविधियों और रिपोर्टिंग को लेकर काफी सक्रिय रहते हैं। हिंदी में एम ए जयनारायण प्रसाद ने सिनेमा पर व्यापक रुप से गंभीर और तथ्यपरक लेखन किया है। जय नारायण प्रसाद ने गौतम घोष की एक फिल्म शंखचिल में अभिनय भी किया है।
दिल और दिमाग दोनों के सम्मिश्रण से जब सिनेमा बनता है, तो उसकी खूबसूरती ही कुछ और होती है। ’30वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’ में कुछ फिल्में ऐसी थीं, जो दर्शकों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींचती थीं। ऐसी फिल्मों को देखना एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि, इस कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में 29 देशों की 175 फिल्में थीं। कुछ लघु, कुछ डाक्यूमेंट्री, पर ज्यादातर बड़ी फीचर फिल्में – जिन्हें देखना एक अजीबोगरीब संसार और उस देश की संस्कृति से गुजरना जैसा रहा। ऐसी ही कुछ बेहतरीन फिल्मों से हमारा साबका हुआ, जिनके बारे में जानना बेहद जरूरी है।
‘परिक्रमा’ (द जर्नी, 2024) : निर्देशक /गौतम घोष
‘परिक्रमा’ (द जर्नी) निर्देशक गौतम घोष की ताज़ा फिल्म है। फिल्म महोत्सव में स्पेशल स्क्रीनिंग के तहत दिखाई गई और भारत-इटली सहयोग से बनीं यह पहली फीचर फिल्म भी है। गौतम की इस फिल्म में तीन भाषाओं का इस्तेमाल हुआ है – अंग्रेजी, हिंदी और इतालवी। इस फिल्म का ऑफर गौतम घोष को बीस साल पहले मिला था। उसके बाद गौतम ने इस फिल्म के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। बीच में कोरोना जैसी महामारी की वजह से यह अटक गई। फिर कलाकार ढूंढ़ने का काम आरंभ हुआ। कुछ तो मिल गए, पर एक बाल कलाकार को तलाशने में ज्यादा समय लगा। इस बीच गौतम ने पहले हिस्से की शूटिंग इटली में पूरी कर ली। और इसका दूसरा हिस्सा जबलपुर में फिल्माया गया, जहां नर्मदा बहती है।
इस फिल्म के पहले हिस्से में अलकजेंड्रो (संक्षेप में अलेक्स) नामक एक इतालवी लेखक-निर्देशक हैं, जो नर्मदा पर फिल्म बनाने भारत आता है। अपने इस सिनेमाई-सफर (सिनेमैटिक जर्नी) के दौरान नर्मदा में अलेक्जेंड्रो की मुलाकात लाला नामक एक किशोर से होती है, जो नर्मदा के घाट और वहां के मंदिरों के आसपास फेरी करता है। लाला अनाथ है और नर्मदा नदी के बहाव में इसका घर डूब चुका है। उस किशोर के मां-बाप शरणार्थी बनकर कहीं और पनाह लिए हुए हैं।
‘परिक्रमा’ की कथा यह है कि इस फिल्म में दो किशोर हैं और दोनों ‘मातृत्व विहीन’ है। एक अलकजेंड्रो का अपना बेटा है, जिसकी मां गुजर चुकी हैं और दूसरा नर्मदा में विस्थापन के कारण अनाथ की जिंदगी जी रहा वह किशोर (लाला) है।
इस फिल्म की कहानी बस इतनी-सी है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में दोनों किशोर के ‘मातृत्व विहीन जिंदगी’ को दिखाया गया है। इसका सेकेंड पार्ट उस किशोर के बहाने नर्मदा नदी और वहां के लोगों के विस्थापन की अंतहीन कहानी भी सुनाता है।
नर्मदा नदी की सुंदरता और नदी के बहाव की भयावहता को गौतम घोष ने बहुत खूबसरती से अपने कैमरे में कैद किया है। ‘परिक्रमा’ में दो बच्चों की जिंदगी के बहाने निर्देशक ने पर्यावरण की कथा भी हमें सुनाई कि अगर विकास जनहित में नहीं हुआ, तो हजारों को विस्थापन की पीड़ा झेलनी पड़ती है।
‘परिक्रमा’ में अलक्जेंड्रो की भूमिका इटली के मशहूर अभिनेता मार्को लियोनार्डी ने निभाई है। मार्को कई मशहूर फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। ‘सिनेमा पैराडिसो’ (1988) और ‘वंस अपान ए टाइम इन मैक्सिको’ (1992) में मार्को लियोनार्डी का अभिनय आज भी यादगार माना जाता है। इस फिल्म में मुख्य अभिनेता वह किशोर लाला है। लाला का असली नाम आर्यन बदकुल है। वह इंदौर (मध्यप्रदेश) का है और इंदौर में वह आठवीं कक्षा में पढ़ता है।
‘परिक्रमा’ में आर्यन बदकुल के सलेक्शन की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इस फिल्म के लिए एक कार्यशाला आयोजित की गई थीं। अनेक बच्चों के साथ आर्यन भी गौतम घोष की उस कार्यशाला में पहुंचा था।
कार्यशाला में ऑडिशन देने वाला आर्यन बदकुल आखिरी बच्चा था। सभी बच्चे जब चले गए, तो आखिर में आर्यन को बुलाया गया। और वह चुन लिया गया। ‘परिक्रमा’ में अभिनय के लिए आर्यन सर्वश्रेष्ठ पाया गया। ‘परिक्रमा’ आर्यन बदकुल की पहली मूवी भी है।
‘परिक्रमा’ का छायांकन, इस फिल्म की साउंड डिजाइन और म्यूजिक वाकई दिल में उतर जाता है। कल-कल बहती नर्मदा और इसके कारण हो रहे लोगों के विस्थापन को बहुत कायदे से फिल्माया गया है। इस फिल्म को देखने के लिए अगले साल इसके रिलीज तक इंतजार करना पड़ेगा।
देखने लायक है सुजय मुखर्जी की शार्ट फिल्म ‘हुनर’
तीसवें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लघु और वृतचित्रों की प्रतियोगिता-सेक्शन में एक बेहतरीन फिल्म ‘हुनर’ (2024) भी शामिल थीं। इसकी कथा यह है कि एक बच्चा, जिसकी दिलचस्पी इंजीनियरिंग में है, लेकिन उसके पिता उसे जबरदस्ती क्रिकेटर बनाना चाहता है। जब उसे एक स्कूली प्रोजेक्ट में पुरस्कार मिलता है, तब उसके पिता को अहसास होता है जबरन किसी को क्रिकेटर नहीं बनाया जा सकता। आधे घंटे की इस छोटी फिल्म ‘हुनर’ को दुनिया भर में अब तक 39 पुरस्कार मिल चुके हैं। इस लघु फिल्म का निर्देशन सुजय मुखर्जी ने किया है। सुजय मुखर्जी सन् साठ के दशक के मशहूर अभिनेता जॉय मुखर्जी के बेटे हैं। यह सुजय मुखर्जी की दूसरी लघु (शार्ट) फिल्म है। पहली थीं ‘अब मुझे उड़ना है’ (2019)।
‘हुनर’ में बच्चे की भूमिका विधान एस शर्मा ने निभाई है और पिता के किरदार में हैं रोहित बोस राय। रंजन यादव ने इस लघु फिल्म में खूबसूरत छायांकन किया है और स्वप्निल जाधव ने इसका संपादन।
अभिनेत्री विद्या बालन ने कहा – मुझे मेथड एक्टिंग नहीं आती
कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में एक दिन अभिनेत्री विद्या बालन भी पहुंचीं। शुरुआत के दिनों में विद्या बालन ने एक बांग्ला फिल्म ‘भालो थेको’ (2003) में अभिनय किया था। इस बांग्ला फिल्म के निर्देशक थे गौतम हाल्दार। कुछ दिनों पहले ही गौतम हाल्दार का निधन हुआ है। उनकी याद में यह फिल्म यहां दिखाई गई। चूंकि विद्या बालन इस बांग्ला फिल्म ‘भालो थेको’ की अभिनेत्री थीं, इसलिए इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर विद्या बालन को कोलकाता आमंत्रित किया गया था।
विद्या ने स्क्रीनिंग के बाद पत्रकारों से कहा – ‘वह मेथड एक्टिंग एकदम नहीं जानती।’ उन्होंने कहा, पटकथा पढ़ते ही वह अपने किरदार में डूबने लगती है। तब उसे कुछ नहीं सूझता। उन्होंने कहा, कॉमेडी फिल्मों का इंतजार वह बहुत दिनों से कर रही है। काश ! कोई उनसे कॉमेडी करवाता। विद्या बालन ने कहा, हिंदी सिनेमा में अब तक पुरुष ही कॉमेडी करते रहे हैं। अब महिलाओं को भी सिनेमा में कॉमेडी करने का मौका मिलना चाहिए।