उत्तम कुमार: एक सितारा जो आज तक चमकता है

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Shantanu Guha Ray

उत्तम कुमार बांग्ला सिनेमा के एक ऐसे सितारें जो ऑलटाइम फेवरिट माने जाते हैं। उनका कद इतना ऊंचा है कि बंगाली सिनेमा में उन्हे महानायक का दर्जा प्राप्त है और ये सिर्फ कहने-लिखने की बात नहीं…. कोलकाता में बाकायदा एक मेट्रो स्टेशन का नाम उन्ही के नाम पर महानायक उत्तम कुमार स्टेशन है। 3 सितंबर 2023 को उनकी 97वीं सालगिरह पर हम पेश कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शांतनु गुहा रे के लिखे एक लेख का हिंदी अनुवाद। शांतनु ने पत्रकारिता और शोधपरक लेखन दोनों में ही स्पोर्ट्स से लेकर बिज़नेस और क्राइम से लेकर आर्ट एंड कल्चर में महत्वपूर्ण काम किया है। फिलहाल वो उत्तम कुमार पर एक पुस्तक लिख रहे हैं जो शीघ्र प्रकाश्य है। उनके लेख का अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार महेश राजपूत ने किया है। महेश राजपूत सिनेमा और संस्कृति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं और  पिछले साल उन्होने लॉकडाउन के दौरान मीडिया संस्थानों में हुई छंटनी पर एक बहुत महत्वपूर्ण शॉर्टफिल्म ‘द लिस्ट’ बनाई थी।

उत्तम कुमार एक धूमकेतु की तरह चमके और फिर खो गये।

बंगाल का यह सबसे जाना-माना फिल्मी सितारा रहस्यों से घिरा था। मैं उनसे कभी नहीं मिला पर उनके बारे में और उनके अभिनय कौशल के बारे में मैंने अनगिनत किस्से सुने हैं। और उनकी तुनकमिज़ाजी के बारे में भी।

एक नयी किताब आई है। यह बारों और कोलकाता मैदान पर है, जहां कुछ बड़े फुटबाल क्लब, ईडन गार्डन्स क्रिकेट स्टेडियम और आलीशान विक्टोरिया मेमोरियल है।

सरोज दत्ता की एनकाउंटर किलिंग के चश्मदीद थे उत्तम कुमार?

किताब में मैदान के कई स्थलों, जहां शीर्ष लेखक, फिल्मकार और विचारक पीने जाते थे। कुछ तो अपनी जेबों में व्हिस्की की छोटी बोतलें भी ले जाते थे। लेखक राहुल पुरकायस्थ बिमल देब की कविता “उत्तम कुमारेर मॉर्निंग वॉक” का ज़िक्र करते हैं और लिखते हैं कि अभिनेता ने कलकत्ता पुलिसकर्मियों को तीन लोगों को मैदान में बेहद करीब से गोली मारते देखा था। एन्काउंटर किलिंग करार दी गयी उस घटना में मारे गये लोग नक्सली थे। मारे गये लोगों में से एक नक्सलियों के नेता सरोज दत्ता भी थे।

संभवत: कोलकाता पुलिस अधिकारियों से धमकाये जाने के बाद उत्तम कुमार ने चुपचाप कोलकाता छोड़ दिया और मुंबई जाकर रहने लगे। संभवतः उत्तम कुमार ने किन्हीं लोगों को उक्त घटना के बारे में बताया था और बात पुलिस तक पहुंच गई थी। बाद में मामला ठंडा पड़ने पर वह कोलकाता लौटे और पहले से साइन की फिल्मों की शूटिंग शुरू की।

इसके बावजूद आपको कोलकाता में एक व्यक्ति नहीं मिलेगा जो कहेगा कि उत्तम कुमार कायर थे और उन्होंने उस घटना का मुद्दा प्रदेश सरकार के सामने नहीं उठाया था।

उत्तम कुमार बंगाल के लोगों के चहेते थे, जिन्होंने उन्हें महानायक का खिताब दिया था। बंगाल में कोई और अभिनेता नहीं हुआ, जिसने तीन दशक में उत्तम कुमार जितना कद हासिल किया हो। उन्होंने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था।

Uttam Kumar and wife Supriya devi

वह काफी तुनकमिज़ाज भी थे। एक बार वह खाने के टेबल से उठ गये और पैदल सड़क पर निकल पड़े क्योंकि सुप्रिया चौधरी, उनकी दूसरी पत्नी, ने उनकी कही डिश नहीं बनाई थी। पहले सैकड़ों और फिर हजारों की तादाद में लोग अपने चहेते स्टार को सड़क पर पैदल चलते देख आसपास जमा होने लगे। परेशान सुप्रिया पति को मनाने पीछे-पीछे चल रही थीं। उन्होंने जूते तक नहीं पहने थे, सो गर्मी के मौसम में नंगे पांव सड़क पर चल नहीं पा रही थीं। वह रो भी रही थीं और लगातार अपनी गलती के लिए माफी मांग रही थीं। आखिर, पार्क स्ट्रीट थाने से पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे और उन्होंने उत्तम कुमार से कहा कि उन्हें पुलिस जीप में बैठना होगा वरना भगदड़ मचने की आशंका है। कहते हैं कि उत्तम कुमार ने इस घटना के बाद एक सप्ताह तक पत्नी से बात नहीं की।

इस लोकप्रिय सितारे के अनगिनत किस्से हैं। मैंने कोलकाता के कुछ वरिष्ठ कलाकारों से सुना कि कैसे उत्तम कुमार ने अपनी दिल की बीमारी के इलाज के लिए बाईपास सर्जरी से मना कर दिया था। उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि एक डॉक्टर कैसे किसी सितारे का सीना चीरकर दिल देख सकता है। ऑपरेशन के बाद वह सितारा कैसा दिखेगा। डॉक्टरों से सवाल किया,  डॉक्टर चुप रह गये।

मैं उत्तम कुमार पर एक किताब के लिए शोध कर रहा हूं और मुझे अभिनेता के बारे में काफी दिलचस्प किस्से सुनने को मिले हैं। एक उनके ‘छोटी सी मुलाकात’ के ज़रिये बॉलीवुड में असफल होने के बारे में है। फिल्म में उनके साथ वैजयंतीमाला बाली थीं। फिल्म तब की बंबई समेत देश के गिनेचुने सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित हुई। अफवाहें थीं कि शक्तिशाली कपूर परिवार ने खेल बिगाड़ा क्योंकि उत्तम कुमार ने ‘संगम’ में राज कपूर की दी भूमिका ठुकरा दी थी। बाद में, राजेंद्र कुमार ने यह भूमिका निभाई पर राज कपूर को उत्तम कुमार के प्रस्ताव ठुकराने की बात याद रही। असल में यह दूसरी बार था, उससे पहले उत्तम कुमार ‘जागते रहो’ में प्रमुख भूमिका का प्रस्ताव ठुकरा चुके थे। उत्तम कुमार बंबई (अब मुंबई) में कभी बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर सके।

यह अजीब ही है कि मुंबई में उत्तम कुमार कैसे सफल नहीं हो सके जहां शशि कपूर, धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे सितारे भी उनकी अभिनय शैली के प्रशंसक थे। मैंने कहीं पढ़ा था कि उत्तम कुमार को शक्ति सामंत निर्देशित ‘अजनबी’ में भी लिया गया था, पर फिल्म बनकर सिनेमाघरों में आई तो उसमें वह नहीं थे।

हिंदी फिल्मों में नहीं बना सके मुकाम

बंबई की विफलता ने उत्तम कुमार को गहरी चोट पहुंचाई। अभिनेता को काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा और कर्ज़ चुकाने के लिए अपनी कुछ संपत्तियां बेचनी पड़ीं। उसी समय उन्हें पहला दिल का दौरा भी पड़ा। इसका बुरा पहलू यह था कि जिन्होंने मुंबई में उन्हें मुश्किलों में डाला, वह कोई और नहीं कोलकाता के बंगाली दोस्त थे। एक महीने बाद एक बार शूटिंग के दौरान उत्तम कुमार ने अपने कैमरामैन दोस्तों से कहा कि उनकी एक तस्वीर उन्हें बनावटी मकड़ी के जाले के पीछे खड़ा कर खींची जाए। तस्वीरें प्रिंट होने के बाद अखबारों में छपीं, उत्तम कुमार ने सुप्रिया से कहा कि यही उनकी ज़िंदगी का सच है। “हर कोई मेरे खिलाफ जाल बुनना चाहता है।” वह इससे भी खफा थे कि उनके जूनियर और प्रतिद्वंदी सौमित्र चटर्जी अक्सर लोगों से कहते थे कि शीर्ष बंगाली अभिनेत्रियों को उत्तम कुमार के साथ नहीं, उनके साथ जोड़ी बनानी चाहिए। हालांकि निर्देशकों को ऐसा नहीं लगता था।

मेरी मुलाकात सुप्रिया से उनकी मृत्यु से एक साल पहले हुई थी। उन्होंने महानायक के साथ बिताये अपने समय और ज़िंदगी के बारे में कुछ अद्भुत किस्से सुनाये। वह श्वेत-श्याम बंगाली सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ दौर था। कोई व्हाट्सएप या इंस्टा नहीं था पर फिल्में खूब चलती थीं।

सुप्रिया ने हंसते हुए बताया कि लड़कियों को उत्तम कुमार से दूर रखना कितना मुश्किल काम था जो स्टूडियो में शूटिंग के समय आती थीं। उन्होंने बताया, “मज़ेदार यह कि हर लड़की उनसे तुरंत शादी करना चाहती थी।”

सुप्रिया हमसे बात करते समय भी दवाइयों पर चल रही थीं। हर पांच मिनट के बाद वह ब्रेक लेतीं, पानी पीतीं और कह रही थीं कि वह आम तौर पर बिना पैसे लिए इंटरव्यू नहीं देतीं। वह बात कर रही थीं क्योंकि यह उत्तम कुमार के बारे में था। मुझे नहीं पता कि मुझे उन्हें कितना भुगतान करना चाहिए था। मुझे अहसास हुआ कि हम तो पारंपरिक तौर पर मिठाई तक नहीं ले गये थे।

पर वरिष्ठ अभिनेत्री ने जैसे अपना दिल खोलकर रख दिया। उन्होंने करीब 25 किस्से बताये जो अपनी किताब के हर खंड की शुरुआत में बताने की मेरी योजना है। एक किस्सा उत्तम कुमार का अपने घर पर लक्ष्मी पूजा का है। सुप्रिया ने बताया कि वह छत पर लक्ष्मी की कल्पना करते थे। और लक्ष्मी पूजा से एक सप्ताह पहले हर शाम उन्हें एक सफेद उल्लू देखने का भी मौका मिला, जो कहीं से उनके घर आ जाता था। सफेद उल्लू को लक्ष्मी का वाहक माने जाने के कारण शुभ माना जाता है।

दूसरा दिलचस्प किस्सा है कि कैसे उत्तम कुमार शयन कक्ष में भी उनसे गाऊन के बजाय साड़ी पहनने की ही अपेक्षा करते थे, भले साड़ी नयी न होकर पुरानी हो। उन्होंने बताया, यह उन्हें अजीब लगता था। कोई साड़ी में भला कैसे सो सकता है? पर स्टार ऐसे ही होते हैं। उनके तौर-तरीके,  नखरे और सनक बाकियों से अलग होते हैं।

बंगाल के सबसे बड़े सितारे

सुप्रिया ने कहा, वास्तव में उत्तम कुमार काफी हैंडसम थे। सत्यजीत रे की ‘नायक’, जिसमें उन्होंने शीर्षक भूमिका की थी, उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक थी। मुझे बताया गया कि फिल्म में उत्तम कुमार को देखकर एलिज़ाबेथ टेलर बहुत प्रभावित हुई थीं और उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। यह मुलाकात नहीं हो सकी थी। कलकत्ता में, सौमित्र चटर्जी, जो रे के पसंदीदा अभिनेता थे, दोस्तों से पूछा कि रे ने उनके बजाय उत्तम कुमार को कैसे लिया? यह शायद वह सीधे रे से नहीं पूछ सकते थे।

महान फिल्मकार ने खुद ‘नायक’ के प्रीमियर के बारे में बताया था कि उत्तम कुमार नये सूट में कितने स्मार्ट दिख रहे थे और सुप्रिया साड़ी में कितनी खूबसूरत लग रही थीं। जाहिर है, फिल्म के शो के बाद प्रशंसक बेकाबू हो गये और रे भी हालात पर नियंत्रण नहीं रख पाये। प्रशंसकों ने उत्तम कुमार के कपड़े फाड़े और पुलिस अभिनेता को भीड़ से छुड़ाकर ओबेराय ग्रांड ले गयी। रे ने एक इंटरव्यू में कहा कि तब उन्होंने महसूस किया कि राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना होने के बाद पहला पुरस्कार जीतने वाले उत्तम कुमार बंगाल के सबसे बड़े सितारे क्यों माने जाते थे।

यह त्रासदी ही है कि उनकी मौत कम उम्र में हुई। वह पचासेक साल के ही होंगे। शराब और अस्तव्यस्त जीवनशैली ने उनके जीवन को बिगाड़कर रख दिया था। वह उतने हैंडसम भी नहीं रह गये थे। उत्तम कुमार समझ चुके थे कि उनका समय पूरा हो चुका है, उन्हें ‘ओगो बोधू सोंदरी’ के सेट पर तगड़ा दिल का दौरा पड़ा।

उनकी मौत से कुछ ही पहले की दो घटनाएं मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। एक, उनका पसंदीदा मेकअप रूम एक बॉलीवुड स्टार को दिया गया और उत्तम कुमार को बाहर इंतज़ार कराया गया। उत्तम कुमार को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने कहा कि अगर जीवन में प्रवेश का दरवाज़ा है तो जीवन से बाहर जाने का दरवाज़ा (एक्ज़िट डोर) भी है और वह इसे जानते हैं। दूसरी, रे के साथ काम कर चुके पुनू सेन से उत्तम कुमार ने पूछा था कि क्या रे के पास उनके लिए कोई भूमिका है। और बताया था कि उन्हें जो भूमिकाएं मिल रही हैं, पसंद नहीं हैं।

सेन से बातचीत के दो दिन बाद उत्तम कुमार ने इन गंभीर अफवाहों के बीच दम तोड़ा कि जब वह ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे तो एक जीवनरक्षक दवा उन्हें नहीं दी गई।

क्यों? इसका जवाब किसीके पास नहीं है।

केवल सुप्रिया ने मुझे इंटरव्यू समाप्त करते समय बताया: याद रखो, जो पुरुष कई महिलाओं के बीच फंसा रहा है, कभी चैन से नहीं जी पाता। वह हमेशा तीव्र मानसिक पीड़ा झेलता रहेगा।”

सुप्रिया को पता ही होगा, वह बंगाल के सबसे बड़े फिल्म स्टार के जीवन और समय का बड़ा हिस्सा रही हैं।

शांतनु गुहा रे की किताब “उत्तम कुमार : द स्टार मार्च 2024 में आयेगी। इसमें उत्तम कुमार के बारे में 25 एक्सक्लूज़िव किस्से होंगे जो सुप्रिया चौधरी ने बताये हैं।

अस्वीकरण : यह लेखक के निजी विचार हैं

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