मुग़ल ए आज़म 6: अनारकली को माफ़ी बानज़रिए अकबर
मुगले आज़मएक ऐसी फिल्म है जिसमें सिनेमा से जुड़ी विधाओं के उच्च कलात्मक मूल्यों के साथ साथ भारतीय समाज और भारतीय राजनीति का विमर्श भी छिपा है। इसमें रामराज का आदर्श भी है, राजधर्म की व्याख्या भी है और जनतंत्र का इंकलाब भी। इस फिल्म के कंटेंट को बेहतर और गहराई से समझने के लिए हम जाने-माने समाजशास्त्री, सिनेविद् व लेखक जवरीमल्ल परखके प्रसिद्ध आलेख ‘मुगले आज़म:सत्ता विमर्श का लोकतांत्रिक संदर्भ’ को 6 अंकों में प्रस्तुत किया है। यह आलेख उनकी प्रसिद्ध पुस्तकभारतीय सिनेमा का समाजशास्त्र में भी उपलब्ध है। 14 जून को मुगले आज़म के निर्देशकके आसिफके जन्मदिन के मौके पर 2023 में शुरु हुई इस श्रृंखला की ये अंतिम कड़ी है। जवरीमल्ल पारख जी साहित्य, सिनेमा और मीडिया पर आलोचनात्मक लेखन एव पटकथा के विशेषज्ञ हैं। ‘लोकप्रिय सिनेमा और सामाजिक यथार्थ’, ‘हिंदी सिनेमा का समाजशास्त्र’, ‘साझा संस्कृति, सामाजिक आतंकवाद और हिंदी सिनेमा’ समेत साहित्य और समाजशास्त्र से जुड़े कई विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित और सम्मानित हो चुकी हैं। न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन के टॉक सिनेमा सीरीज़ के तहत आयोजित कई सत्रों में शामिल होते रहे हैं और सिनेमा के सामाजिक पहलुओं पर नई रोशनी डालते रहे हैं। सीरीज़ के रुप में पुस्तक के इस आलेख का प्रकाशन हमारी सिने बुक रिव्यू श्रृंखला की एक कड़ी है।
‘मुग़ले आज़म’ में अनारकली को छोड़ते हुए अकबर द्वारा कहलाई गई बातें भी कम गौरतलब नहीं है। वह अनारकली को संबोधित करते हुए कहता है, ”ये राज कि अनारकली जिंदा है तुम्हें राज ही रखना होगा। सलीम जिंदगी भर ये समझता रहे कि अनारकली मर गई।…अनारकली जब तक ये दुनिया रहेगी तुम लफ़्ज़े मुहब्बत की आबरू बनकर रहोगी और मुग़लों की तारीख हमेशा याद रखेगी कि बाबर और हुमायूं की नस्ल को तुमने नई ज़िंदगी दी।…लेकिन हम तुम्हें गुमनाम जिंदगी के सिवा कुछ नहीं दे सकते।…हम मोहब्बत के दुश्मन नहीं बाखुदा अपने उसूलों के गुलाम हैं।…एक गुलाम की बेबसी पर गौर करोगी तो शायद मुझे माफ कर सको।“
फ़िल्म के अंत में एक बार फिर हिंदुस्तान का चित्र उभरता है। लेकिन यह हिंदुस्तान अकबर के समय का है। वह हिंदुस्तान जिसकी सरहदें अफगानिस्तान तक जाती है। हिंदुस्तान बताता है कि किस तरह उसको चाहने वाले बादशाह अकबर ने अनारकली को जिंदगी बख्श दी और बदनामी का दामन अपने पर ले लिया। सिर्फ इसलिए कि वह हिंदुस्तान से और अपने उसूलों से प्यार करता था। एक बादशाह के अपने देश से और अपने सिद्धांतों से प्यार की कीमत एक मामूली कनीज़ को अपनी जिंदगी देकर चुकानी पड़ती है। वह जिन उसूलों की बात करता है उनमें बराबरी की बात शामिल नहीं है। यह गैरबराबरी नस्ली अहंकार और और निरंकुश सत्ता के मद से उपजी है। यह गैरबराबरी किसी धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी सत्ता को भी लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख सकती। यह बात जितनी अकबर के समय के लिए सत्य है, उससे भी कहीं ज्यादा आज के लिए सच है। ‘मुग़ले आज़म’ जैसी लोकप्रिय और कालजयी फ़िल्म को इस नज़रिए से भी देखा जाना चाहिए।
सिने बुक रिव्यू श्रृंखला के तहत‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ पर आप सिनेमा से जुड़ी नई पुस्तकों की( पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों की भी) नियमित रुप से जानकारी पा सकेंगे और उनकी समीक्षा और उनके अंश भी पढ़ सकेंगे। इसके अलावा हम उन पुस्तकों पर अपने यूट्यूब प्लैटफॉर्म पर भी चर्चा का आयोजन करेंगे। सिने बुक रिव्यू के नाम से शुरु इस पहल के लिए हम रचनाकारों, समीक्षकों और प्रकाशकों के सहयोग के आकांक्षी हैं। अधिक जानकारी के लिए ई मेल पर संपर्क करें ndff.india@gmail.com
https://ndff.in/mughal-e-azam-5-by-parakh-ji/: मुग़ल ए आज़म 6: अनारकली को माफ़ी बानज़रिए अकबरपाद टिप्पणियां
1. दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया से उद्धृत, ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली, 1996, पृ. 260।
2. शिरीन मूसवी (अनूदित और संपादित): दि एपिसोड्स इन दि लाइफ ऑफ अकबर, सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन हिस्ट्री, अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी, अलीगढ़, पृ. 114।
3. अकबर और जहांगीर से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों के लिए देखेंः आर. पी. त्रिपाठीः राइज एंड फाल ऑफ मुग़ल एंपायर (1985) सेंट्रल बुक डिपो, इलाहाबाद; एस.एम. बर्कः अकबर दि ग्रेटेस्ट मोग़ल (1989), मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स प्रा. लि., नई दिल्ली; जी. बी. मेलिसनः अकबर एंड राइज आॅफ दि मुग़ल एंपायर (1994), लो प्राइस पब्लिकेशंस, दिल्ली; आई. एच. कुरेशीः अकबर (1987) इदराही अदबियत-इ-दिल्ली, दिल्ली; अबु-ल-फज़्लः अकबरनामा, अनुवादः एच. ब्रेवरिज (1972), रेयर बुक्स, दिल्ली; आशीर्वादीलाल श्रीवास्तवः अकबर दि ग्रेट (1967), आगरा; श्रीराम गोयल और शिवकुमार गुप्तः भारत में मुग़ल साम्राज्य का प्रारंभिक इतिहास (अकबर की मृत्यु तक) (1987), मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स प्रा. लि., दिल्ली।
4. राइज एंड फाल ऑफ दि मुग़ल एंपायर, 1985, सेंट्रल बुक डिपो, इलाहाबाद, पृ. 369।
5. वही, पृ. 369।
6. उपर्युक्त सूचनाएं आशीष राजाध्यक्ष और पॉल विलमेन की पुस्तक ‘एनसाइक्लोपिडिया ऑफ इंडियन सिनेमा’ से उद्धृत की गई हैं, ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली, संस्करणः 1999।
7. इरफान हबीबः अकबर एंड सोशल इनइक्विटिज, प्रोसिडिंग्स आॅफ इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस, 1992-93।
8. द्रष्टव्यः आर. पी. त्रिपाठी, आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव, मेलिसन, आइ. एच. कुरेशी, एस. एम.बर्क आदि।
9. अकबर हुमायूं और हमीद बानो का बेटा था। हुमायूं बाबर का बेटा था जिसने भारत पर शासन किया था। बाबर ने दिल्ली पर अधिकार इब्राहीम लोदी को हराकर प्राप्त किया था। बाबर का शासन हुमायूं को प्राप्त हुआ लेकिन वह उसकी रक्षा नहीं कर सका और लगभग पांच साल के लिए दिल्ली पर शेरशाह सूरी का शासन स्थापित हो गया। बाद में हुमायूं ने फिर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। बाबर और हुमायूं का जन्म उस क्षेत्र में नहीं हुआ जिसे आज भारत के नाम से जाना जाता है। अकबर के माता-पिता दोनों इस अर्थ में हिंदुस्तानी नहीं थे। अकबर का जन्म सिंध प्रांत के उमरकोट क्षेत्र में एक हिंदू रियासत में हुआ था जिसके शासक राणा बिरसाल ने हुमायूं के परिवार को अपने यहां शरण दी थी। बाबर और हुमायूं का जन्म भले ही हिंदुस्तान में न हुआ हो लेकिन उनकी मौत यहीं हुईं। अकबर ने राजपूत राजकुमारियों से विवाह कर और उनसे होने वाले पुत्र को शासन की बागडोर सौंपकर अपने परिवार के कथित विदेशी मूल को पूरी तरह से भारतीय बना दिया था।
10. जी. बी. मेलिसन, पृ. 196-200।
11. ‘मुग़ले आज़म’ में हिंदुस्तान का नक्शा दो बार आता है। एक बार फ़िल्म के शुरू में और दूसरी बार फ़िल्म के अंत में। हिंदुस्तान इस फ़िल्म का कथावाचक (नेरेटर) है। लेकिन हिंदुस्तान का जो नक्शा इसमें दिखाया गया है, वह दोनों बार एक सा नहीं है। आरंभ में वर्तमान भारत का नक्शा है जिसमें पाकिस्तान अलग हो चुका है जबकि फ़िल्म के अंत में वह हिंदुस्तान है जिस पर अकबर का शासन था। इसमें मौजूदा पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान का कुछ हिस्सा भी दिखाया गया है। आरंभ और अंत में हिंदुस्तान के दो अलग-अलग नक्शे दिखाने के पीछे मकसद यह रहा होगा कि भारत को एक तभी रखा जा सकता है जब सभी धर्मों और मतों को मानने वालों को शासक वर्ग अपने साथ लेकर चलें। यदि ऐसा नहीं होगा तो भारत के वैसे ही टुकड़े होंगे जैसा कि आजादी के समय भारत के हो गये थे। ‘मुग़ले आज़म’ का यह संदेश स्वयं पाकिस्तान के दो टुकड़े होकर सच साबित हुआ।
12. अकबर ने हिंदू राजकुमारियों से विवाह की जो परंपरा कायम की उसमें मुसलमान बादशाह हिंदू राजकुमारियों से विवाह तो करते थे लेकिन अपनी पुत्रियां वे राजपूत राजाओं को नहीं देते थे। इसी तरह राजपूत राजा अपनी बेटियों का विवाह मुसलमान बादशाहों और शाहजादों से करने को तैयार थे लेकिन वे अपने घर में मुसलमान लड़कियां विवाह कर लाने को तैयार नहीं थे। दोनों जगह कारण एक ही था, रक्त संबंधी शुद्धता और श्रेष्ठता की भावना। राजपूत मुसलमानी रक्त से अपने को बचाना चाहते थे और मुसलमान अपनी कन्याओं को राजपूत को न देकर अपनी श्रेष्ठता की रक्षा करना चाहते थे। सामाजिक श्रेणीबद्धता के बारे में अकबर के विचारों पर टिप्पणी करते हुए इरफान हबीब लिखते हैं, ”फिर भी, सामाजिक श्रेणीबद्धता के बारे में अकबर का कठोर नज़रिया बराबर बना रहा। वह आम आदमी के शिक्षा प्राप्त करने का विरोधी था, ”जब भी कोई घरेलू नौकर इल्म हासिल करता है तो बहुत से काम छूट जाते हैं“ (आइने अकबरी, पृ. 244)। उसका यह भी मानना था कि ”अधीक्षकों को इस बात के प्रति सजग रहना चाहिए कि कोई अपना व्यवसाय अपनी मर्जी से न छोड़ दे“(वही, पृ. 244)। ये उसके अपने विचार थे या जाति व्यवस्था का प्रभाव था कि साधारण लोग अपने धंधों से जुड़े रहें तो अच्छा काम करेंगे, पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता (उप. पृ. 306)। अकबर का यह दृष्टिकोण ऐतिहासिक रूप से सही है तो अनारकली की कहानी में अकबर का अनारकली और सलीम के विवाह का विरोध करना अकबर के नज़रिए से मेल खाता है।
13. ”एक सम्राट को हमेशा विजय के लिए तत्पर रहना चाहिए अन्यथा उसके पड़ोसी शासक उसके विरुद्ध शस्त्र उठा लेते थे“ आइने अकबरी में अकबर का कथन, अकबर दि ग्रेटेस्ट मोग़ल, पृ. 37।
14. कनीज़ की भूमिका उस दौर की मशहूर अभिनेत्री मधुबाला ने निभाई है जो अपनी खूबसूरती और भावात्मक अभिनय के लिए खासतौर पर पहचानी जाती थी। फ़िल्म समीक्षकों का विचार था कि मधुबाला के सौंदर्य में पुरुष को अपने रूपपाश में बांध लेने की अद्भुत क्षमता थी। इस भूमिका के लिए मधुबाला का चयन निर्देशक की सौंदर्य दृष्टि का प्रमाण भी है। बताया जाता है कि अनारकली की भूमिका के लिए के. आसिफ ने पहले नरगिस के नाम पर भी विचार किया था।
15. कला इतिहासकार जेम्स फर्गुस्सन ने टिप्पणी करते हुए लिखा है, ‘अकबर के चरित्र में सहिष्णुता की भावना से बढ़कर कुछ भी उतना महत्त्वपूर्ण नहीं था और यह भावना उसके प्रत्येक कार्यों में व्यक्त होती थी। ऐसा लगता है कि उसमें अपनी हिंदू प्रजा के प्रति उतना ही प्रेम और प्रशंसा का भाव था जितना कि उसका अपने ही धर्मावलंबियों के प्रति रहा होगा। चाहे वह नीति के कारण हो या उसका वास्तविक झुकाव हो उसने उनकी कलाओं को भी उतना ही सम्मान दिया जितना कि उस कला को जो सिर्फ उसके अपने लोगों से जुड़ी थी“ (अकबर दि ग्रेटेस्ट मोग़ल से उद्धृत, पृ. 175)। इतिहासकार इश्तियाक हुसैन कुरैशी ने अकबर के कला प्रेम पर टिप्पणी करते हुए लिखा था, ”अकबर ललित कलाओं का एक उदार संरक्षक था। वह महान भवन निर्माता, लघुचित्र शैली का संस्थापक और सभी प्रकार के साहित्यिक प्रयासों का प्रेरक था। उसने कवियों को आश्रय प्रदान किया था और बहुत से शास्त्रीय ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया। मुग़ल साम्राज्य को संस्कृति राज्य की संज्ञा दी गई है और अकबर अपने साम्राज्य की इस विशिष्टता का संस्थापक भी था“ (अकबर, पृ. 229)।
16. ”ऐसा प्रतीत होता है कि और धर्मों की तुलना में अकबर हिंदू धर्म से अधिक प्रभावित हुआ था। वह आत्मा के आवागमन में विश्वास करने लगा, हिंदू देवी-देवताओं और अवतारों में श्रद्धा रखने लगा तथा हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों जैसे रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, बसंत, होली आदि मनाने लगा। ब्राह्मण लोग उसकी कलाई पर रत्नजड़ित राखी बांधकर उसे आशीर्वाद देते थे (एन. सी. मेहता, दि रिलीजस पॉलिसी ऑफ अकबर, पृ.67) । उसने अपने पुत्र जहांगीर को हिंदू प्रथानुसार दशहरे के दिन मेवाड़ के राणा के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा था। कभी-कभी वह हिंदुओं के समान तिलक और छापा लगाकर जनसाधारण के सामने आता था। अपनी माता हमीदाबानो की मृत्यु पर उसने हिंदू प्रथानुसार मुंडन करवाया था। हिंदू नरेशों के समान वह प्रातःकाल ‘झरोखा दर्शन’ देता था। उसने अपने पुत्र सलीम का विवाह हिंदू प्रथा के अनुसार बारात ले जाकर और फेरे फिरवा कर किया था। अकबर ने मुग़ल हरम में तुलसी का पौधा लगवाया था। हरम में हवन और यज्ञ के लिए ब्राह्मणों को बुलवाया जाता था। उसने हिंदू संतों और भक्तों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष आदेश जारी किए थे। सामान्य हिंदुओं के पक्ष में भी उसने अपनी अनेक आज्ञाएं जारी कीं“ (अकबर का धर्म और धार्मिक नीति, लेखक शिवकुमार गुप्त, भारत में मुग़ल साम्राज्य का प्रारंभिक इतिहास, प्रधान संपादकः श्रीराम गोयल, 1987, मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स, प्रा. लि. नई दिल्ली, पृ. 231-32)।
17. लेकिन इस नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए कि अकबर का मूर्ति पूजा पर यकीन बढ़ने लगा था। जिस दीने इलाही की स्थापना उसने की थी, उसमें बुतपरस्ती के लिए कोई स्थान नहीं था। वह निर्गुण और निराकार एक ईश्वर की पूजा का ऐसा पंथ था जिसमें अंध विश्वासों और धार्मिक रूढ़ियों के लिए कोई जगह नहीं थी। इस दीने इलाही पर बहुत हद तक सूफी मत का प्रभाव था (एस. एम. बर्क, अकबर दि ग्रेटेस्ट मोग़ल, पृ. 126)।
18. ए मोहब्बत जिंदाबाद।
मंदिर में मस्जिद में तू और तू ही है ईमानों में,
मुरली की तानों में तू और तू ही है अजानों में,
तेरे दम से दीनधर्म की दुनिया है आबाद
ए मोहब्बत जिंदाबाद।
19. ए मोहब्बत जिंदाबाद।
है ताज हुकुमत जिसका मजहब फिर उसका ईमान कहां,
जिसके दिल में प्यार न हो वो पत्थर है इंसान कहां,
प्यार के दुश्मन होश में आ हो जाएगा बरबाद
ए मोहब्बत जिंदाबाद।
20. एनसाइक्लोपिडिया ऑफ इंडियन सिनेमा से उद्धृत, पृ. 365।
21. न दिल तुमको देते न मजबूर होते,
न दुनिया न दुनिया के दस्तूर होते,
क़यामत से पहले क़यामत न होती।
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती।।
हमीं बढ़ गए इश्क मंे हद से आगे,
ज़माने ने ठोकर लगाई तो जागे,
गर मर भी जाते तो हैरत न होती।
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती।।
तुम्हीं फूंक देते नशेमन हमारा,
मोहब्बत पर एहसान होता तुम्हारा,
जमाने से कोई शिकायत न होती।
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती।।
22. नवरोज पारसी धर्मावलंबियों का पर्व था जिसे अकबर और बाद में जहांगीर द्वारा धुमधाम से मनाया जाता था। अकबर पारसियों और हिंदुओं की तरह सूर्य-उपासना भी किया करता था।