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सभी भूमिकाओं में श्रेष्ठ थे  बलराज- परीक्षित साहनी

डैड ने 1938 में एक साल के लिए महात्मा गाँधी के साथ सेवाग्राम में काम किया था। अगले साल उन्हें अन्य देशों में युद्धरत भारतीय सैनिकों के लिए हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए भारत-भूमि को छोड़कर इंग्लैण्ड की उड़ान भरने के लिए कहा गया। डैड पल-भर के लिए भी नहीं झिझके। वह परिवार के किसी भी सदस्य से अलग थे। वे हमेशा नई-नई ख़तरनाक चुनौतियों की तलाश में रहते थे।

सच्चे ‘जन कलाकार’ थे बलराज साहनी

बलराज साहनी ने केवल अभिनेता ही नहीं बल्कि एक अध्यापक, नाट्य लेखक-निर्देशक, रेडियो उद्घोषक, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूरी ईमानदारी के साथ किया। उनके भीतरी और बाहरी रूप में कोई अलगाव न था। देश और देश की जनता के लिए कुछ बेहतर और अच्छा करने की बेचैनी ने उन्हें लाहौर, शांतिनिकेशन, सेवाग्राम(वर्धा), लंदन, बंबई और न जाने कहाँ-कहाँ घुमाया, लेकिन इन सभी जगहों से एक कलाकार के रूप में उन्होंने बहुत कुछ पाया।

Remembering Chetan Anand

‘हक़ीक़त’ जैसे माहौल में चेतन आनंद की याद…

चेतन आनंद एक बेहतरीन फ़िल्मकार होने के साथ साथ बेहद ज़हीन और नफ़ीस इनसान थे। 1946 में उनकी बनाई पहली ही फ़िल्म ‘नीचा नगर’ को फ्रांस के पहले कान फ़िल्म फेस्टिवल में ‘पाम डी ओर’ सम्मान से नवाज़ा गया था।