महारानी: जाति और जेंडर की जंग लड़ती ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’
सोनी लिव पर 28 मई को नई वेब सीरीज़ महारानी रिलीज़ हुई है, जिसके राइटर और क्रिएटर जॉली एलएलबी फेम सुभाष कपूर हैं। हालांकि सीरीज़ निर्देशक करन शर्मा हैं, जो इसी साल जनवरी में रिलीज़ हुई सुभाष कपूर की फिल्म मैडम चीफ मिनिस्टर में उन्हे असिस्ट कर चुके हैं। यूपी-बिहार की दलित राजनीति और महिला चीफ मिनिस्टर के कॉकटेल पर सुभाष कपूर की इस साल की ये दूसरी प्रस्तुति कैसी है, जानिए अमिताभ श्रीवास्तव की त्वरित समीक्षा में …
जाॅली एलएलबी वाले सुभाष कपूर हुमा क़ुरैशी को बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से मिलतेजुलते किरदार में ढाल कर लाये हैं सोनी लिव पर बिहार की राजनीति पर बनी वेब सीरीज़ महारानी में। निर्देशक के तौर पर हालाँकि करन शर्मा का नाम है। हुमा क़ुरैशी अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से चर्चा में आई थीं और जाॅलीएलएलबी 2 में अक्षय कुमार की पत्नी की भूमिका में दिखी थीं। महारानी में हुमा मुख्य भूमिका में हैं और अपने ग्लैमरस व्यक्तित्व से बिल्कुल उलट बिहार के मुख्यमंत्री की घरेलू पत्नी से राज्य की राजनीति के अहम किरदार के रूप में उनका कायाकल्प दिलचस्प है। गूँगी गुड़िया’ से दबंग नेता के रूप में काम भी ठीक किया है।
कहानी नब्बे के दशक के आख़िरी हिस्से में शुरू होती है। पहले एपिसोड की शुरुआत ही अगड़ा बनाम पिछड़ा के जातीय घृणा और हत्या से होती है। पुलिस अफ़सर कहता है-जाति बिहार का सबसे बड़ा सत्य है। ऊँची जात वाला जूनियर पुलिस अफ़सर पिछड़ी जाति के अपने सीनियर पुलिस अधिकारी से कहता है- ‘ सरकार भले आप लोगों का है, सिस्टम हमारे हाथ में है। ‘ जातीय संघर्ष, भूमिसेनाएं, फिरौती, वसूली, घोटाला – बिहार जिन बातों के लिए सुर्खियों में रहा है, वे सब मुख्य कहानी की उपकथाओं के रूप में दिखते रहते हैं। एक किरदार का संवाद है- बिहार इज़ नाॅट ए स्टेट, इट इज़ अ स्टेट ऑफ माइंड।
छठ पूजा के दौरान मुख्यमंत्री पर जानलेवा हमला होता है। मुख्यमंत्री चौका-चूल्हा संभाल रही अपनी पत्नी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करके सियासी दाँव चलते हैं।
सीएम आवास में घुसते हुए नेता कहता है- यह सीएम हाउस है या तबेला? भीमा का सहयोगी मिश्रा उनके प्रतिद्वंद्वियों को ‘आपदा में अवसर‘ तलाशने का ताना मारता है।
मुख्यमंत्री भीमा भारती बने सोहम शाह के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नवीन बाबू के किरदार में अमित स्याल सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं। हालाँकि किरदार में नीतीश कुमार की झलक नहीं है ।
तजुर्बेकार अभिनेता विनीत कुमार, अतुल तिवारी, प्रमोद पाठक , मलयालम सिनेमा की अभिनेत्री कन्नी कुसुरती का काम भी अच्छा है। राजनीति के शातिर खिलाड़ी और धूर्त, भ्रष्ट राज्यपाल की भूमिका में अतुल तिवारी ने ज़बरदस्त काम किया है ।
पंकज झा को देखकर ख़ुशी हुई। एक एपिसोड में विभा रानी जी भी हैं विमला के बहुत अहम किरदार में जिसके सामने आते ही कहानी में नाटकीय मोड़ आता है।
दस एपिसोड की वेब सीरीज़ जैसे जैसे आगे बढ़ती है, स्क्रिप्ट की कसावट ढीली पड़ने लगती है। अगर अंत तक आते आते इसमें नायिका को नैतिक रूप से सच्चा, ईमानदार नेता दिखाने के मोह में नहीं पड़े होते तो मौजूदा सियासत की ज़मीनी हक़ीक़त, कड़वा सच दिखाती वेब सीरीज़ ज़्यादा बढ़िया बनती। आलोचनाओं और विवादों की वजह से धारदार राजनीतिक कथानक पर फिल्म या वेब सीरीज़ बनाने से हमारे फिल्मकार सामान्यतः बचते ही हैं। फिर भी, तमाम तरह की फ़ालतू वेब सीरीज़ के शोरगुल के बीच यह बेहतर और देखने लायक है। राजनीतिक ड्रामा के तौर पर अमेज़न के तांडव से बहुत बेहतर है। सैफ़ अली ख़ान और डिंपल कपाड़िया जैसे बड़े सितारे और राजनीतिक विवाद भी उसे बचा नहीं पाये थे। महारानी को अभिनेताओं ने संभाल लिया है। जाॅली एलएलबी में काम कर चुके कई कलाकार इस वेब सीरीज़ में अहम भूमिकाओं में हैं।