पायल कपाड़िया की फिल्म ‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’
‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ एक कलात्मक फिल्म है जो दर्शकों का मनोरंजन करती है। उनके विचारों को छूती है। उन्हें समृद्ध करती है। यह आनेवाले फिल्मकारों के लिए नये प्रतिमान गढ़ती है।
watch cinema, talk cinema, learn cinema & make cinema... together
‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ एक कलात्मक फिल्म है जो दर्शकों का मनोरंजन करती है। उनके विचारों को छूती है। उन्हें समृद्ध करती है। यह आनेवाले फिल्मकारों के लिए नये प्रतिमान गढ़ती है।
कान फिल्म फेस्टिवल के 77 सालों के इतिहास में तीस साल बाद कोई भारतीय फिल्म मुख्य प्रतियोगिता खंड में चुनी गई है। वह फिल्म है पायल कपाड़िया की मलयालम हिंदी फिल्म ‘आल वी इमैजिन ऐज लाइट’। इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ‘स्वाहम’ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फोटोग्राफिक आर्ट दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को अपने तय मानदंडों के आधार पर मान्यता प्रदान करती है। कान, बर्लिन, वेनिस, टोरंटो, बुसान सहित दुनिया भर में होने वाले सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इसी संस्था से मान्यता प्राप्त करते हैं। भारत में इस संस्था ने केवल चार अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को मान्यता दी है।
ऊपर से लग सकता है कि यह फिल्म मुस्लिम समाज पर सीधे सीधे आरोप लगा रही है कि देश की आबादी बढ़ाने में केवल वहीं जिम्मेदार है। लेकिन आगे चलकर इस मुद्दे की पृष्ठभूमि में बिना किसी समुदाय की भावना को आहत किए कई मार्मिक कहानियां सामने आती हैं। बिना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए निर्देशक कमल चंद्रा ने साफगोई से अपनी बात कहने के लिए इमोशनल मेलोड्रामा का प्रयोग किया है।
फ्रांस में होने वाला 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। सीधे कान से पहली रिपोर्ट…
फिल्म ‘फोर डाटर्स’ में अलग से कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, पर इन पांच औरतों के मानवीय दुःखों के माध्यम से निर्देशक ने वह सब कुछ कह दिया है जिसे स्वीकार करने से मुस्लिम देशों के राजनेता और शासक बचते नजर आ रहे हैं।
कौथर बेन हनिया ने ‘ फोर डॉटर्स’ में एक नये तरह का सिनेमा रचा है। उन्होंने वास्तविक चरित्रों के साथ अभिनेताओं से काम कराया है। हम देखते हैं कि ट्यूनीशिया का समाज इतना आधुनिक और खुले विचारों वाला है। ओल्फा की चारों बेटियों की दिनचर्या में वास्तविक सुंदरता और आजादी है। इस्लामी रैडिकलाइजेशन के बाद सबकुछ बदल जाता है।