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फिल्म समीक्षा: भेदभाव की ‘गुठली’, अधिकार का ‘लड्डू’

दलितों, अनुसूचित जातियों के लोगों को केंद्र में रख भेदभाव की कहानियां कई बार कही गई हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा की ऐसी कहानियां खास करके पूरी दुनिया में चर्चित रहीं। बॉलीवुड में भी ऐसी कई कहानियां आती रही हैं जिन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है, लेकिन मौजूदा दौर में इसे लेकर सजगता, सक्रियता और रचनात्मकता बढ़ गई है।

मसान क्यों अलग थी...

साला ये दुःख काहे ख़तम नहीं होता है… : मसान के 5 साल

सिनेमा का यही मज़ा है और यही विस्मय और विडम्बना भी की एक छोर पर बाहुबली और बजरंगी भाईजान हैं तो दूसरी तरफ मसान.