ऋत्विक घटक: भारतीय सिनेमा का एक ‘अनकट डायमंड’

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ऋत्विक घटक एक ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हे याद रखना और याद करना ज़रुरी है। बांग्ला सिनेमा में यथार्थवादी सिनेमा की शुरुआत भले पथेर पांचाली से मानी जाती हो, लेकिन उसके 3 साल पहले घटक ने नागरिक फिल्म बनाई थी, ये अलग बात है कि वो रिलीज़ उनके निधन के 25 साल बाद हो सकी। ऋत्विक घटक के जीवन के बारे विस्तार से बता रहे हैं कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार जयनारायण प्रसाद। जयनाराय़ण प्रसाद इंडियन एक्सप्रेस समूह के अखबार जनसत्ता कलकत्ता में 28 सालों तक काम करने के बाद रिटायर होकर कलकत्ता में ही रहते हैं। हिंदी में एम ए जयनारायण प्रसाद ने सिनेमा पर व्यापक रुप से गंभीर और तथ्यपरक लेखन किया है। गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी, गायक मन्ना डे, फिल्मकार श्याम बेनेगल, अभिनेता शम्मी कपूर से लेकर अमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी तक से बातचीत। जयनारायण प्रसाद ने जाने माने फिल्मकार गौतम घोष की राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त बांग्ला फिल्म ‘शंखचिल’ में अभिनय भी किया है।

भारतीय सिनेमा में ऋत्विक घटक वो नाम है, जिसे आनेवाली पीढ़ी कभी नहीं भूल पाएगी। वे ‘अनकट डॉयमंड’ थे। सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन की फिल्में तथा सिनेमा के क्षेत्र में इन तीनों के योगदान को अविस्मरणीय माना जाता है।

अब इस धरती पर ये तीनों नहीं हैं। समानांतर सिनेमा के ‘त्रयी’ कहे जाने वाले सत्यजित राय का निधन वर्ष 1992 में हुआ, ऋत्विक घटक 1976 में गुजरे और ‘त्रयी’ की आखिरी कड़ी यानी फिल्मकार मृणाल सेन की मौत वर्ष 2018 में हुई। इन तीनों में ऋत्विक घटक की मृत्यु 6 फरवरी 1976 को हुई, जब वे महज 50 साल के थे।

Ghatak and a scene from his acclaimed film ‘Meghe Dhaka Tara’

ढाका के करीब राजशाही में हुआ था ऋत्विक घटक का जन्म

 ऋत्विक घटक का जन्म ढाका के करीब राजशाही शहर के मियांपाड़ा में 4 नवंबर, 1925 को हुआ था। ढाका और राजशाही शहर के बीच पांच घंटे का फासला है। घटक का पैतृक मकान अब भी है जीर्ण-शीर्ण हालत में। सन् 1947 के भारत विभाजन के बाद ऋत्विक घटक का परिवार हिंदुस्तान आ गया, इसलिए घटक की फिल्मों में देश-विभाजन और स्वाधीनता के बाद खासकर साठ के दशक के बीचोंबीच का समय तथा विभाजन की पीड़ा साफ तौर पर देखी जा सकती है। इस संदर्भ में उनकी विभाजन त्रयी (मेघे ढका तारा, कोमल गांधार, सुबर्नरेखा) का ज़िक्र विशेष तौर पर किया जाता है। 2025 ऋत्विक घटक का जन्म शताब्दी वर्ष भी है।

Ghatak’s Partition Trilogy: Komal Gandhar(1961),Meghe Dhaka Tara(1960), Subarn Rekha(1965)

ऋत्विक घटक के पिता थे जिला मजिस्ट्रेट

 ऋत्विक घटक के पिता का नाम था सुरेशचंद्र घटक और मां का नाम था इंदुबाला देवी। पूरा परिवार शुरू से ही साहित्यिक था।‌ पिता सुरेशचंद्र घटक राजशाही में जिला मजिस्ट्रेट थे। जिला मजिस्ट्रेट तो वे थे ही, कविता और नाटक भी लिखा करते थे इसलिए पूरे इलाके में सुरेशचंद्र घटक की पहचान एक साहित्यकार की भी थीं। ऋत्विक घटक पिता की ग्यारहवीं संतान थे, पढ़ने में भी तेज थे – साहित्यिक रुझान उनमें शुरू से था। ऋत्विक घटक की शुरुआती पढ़ाई भी राजशाही में ही हुई।

बड़े भाई मनीष घटक थे अंग्रेजी के प्रोफेसर

 ऋत्विक घटक के बड़े भाई मनीष घटक अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। कॉलेज में पढ़ाने के अलावा वे लेखन भी करते थे। समाज सेवा के कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उत्तर बंगाल के ‘तेभागा आंदोलन’ में मनीष घटक ने सक्रिय भूमिका निभाई थीं।

मनीष घटक की बेटी थीं लेखिका महाश्वेता देवी

 बहुत कम लोगों को मालूम है ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी फिल्मकार ऋत्विक घटक की भतीजी थीं। महाश्वेता देवी को लेखन विरासत में मिला था, क्योंकि उनके पिता यानी ऋत्विक घटक के बड़े भाई मनीष घटक खुद भी अच्छी कविताएं लिखा करते थे।

कलकत्ता फिल्म सोसाइटी व घटक की सिनेमा में दिलचस्पी

Satyajit Ray and Ritwik Ghatak

 देश-विभाजन के बाद वर्ष 1947 में जब ऋत्विक घटक का परिवार कलकत्ता आया, तो शरणार्थी होने की पीड़ा भी उन्हें झेलनी पड़ी। ठीक ऐसे समय में कलकत्ता फिल्म सोसाइटी बनीं। इसकी स्थापना से ऋत्विक घटक को खूब फायदा हुआ। अच्छी-अच्छी विदेशी फिल्में देखने को मिलीं। इससे ऋत्विक घटक की ‘सिनेमाई दृष्टि’ साफ होती गईं। हालांकि, इस कलकत्ता फिल्म सोसाइटी की स्थापना सत्यजित राय, चिदानंद दासगुप्ता और बंसीचंद्र गुप्ता आदि सिने-प्रेमियों ने मिलकर की थीं।

1948 में लिखा अपना पहला नाटक

 ऋत्विक घटक में साहित्य-संस्कृति के प्रति जागरूकता बचपन से थीं।‌ 1948 में ऋत्विक घटक ने बरहमपुर कृष्णनाथ कॉलेज से बीए किया। इसी दौरान घटक ने नाटक भी लिखा। उस बांग्ला नाटक का नाम था ‘कालो सायर’ यानी काली झील (डार्क लेक)। उसके बाद दूसरा नाटक महाश्वेता देवी के पति बिजन भट्टाचार्य ने लिखा, जिसमें ऋत्विक घटक ने अभिनय किया। वर्ष 1948 में ही ऋत्विक घटक का जुड़ाव इप्टा यानी गण नाट्य संघ से भी हुआ। फिर, वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सदस्य हुए। वर्ष 1955 में ऋत्विक घटक को कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल दिया गया।

सीपीआई से निकाले जाने पर भी हताश नहीं हुए

 ऋत्विक घटक खुलकर बोलने में शुरू से ही विश्वास करते थे। कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ लोगों को यह सब ठीक नहीं लगता था। अंततः ऋत्विक घटक को पार्टी से निकाले जाने का खामियाजा भुगतना पड़ा।‌ लेकिन, वे निराश नहीं हुए। और दिलचस्पी लेकर रचनात्मक काम करने लगे। बिजन भट्टाचार्य जैसे कुछ अच्छे मित्र ऋत्विक घटक के साथ थे, इसलिए इस दौरान घटक ने खूब लिखा और कुछ नाटकों में अभिनय भी किया।

 मैकबेथ, डाकघर और नील दर्पण

पार्टी से निकाले जाने के बाद ऋत्विक घटक की दिलचस्पी नाटक में अभिनय करने और अंग्रेजी नाटकों के अनुवाद में ज्यादा होने लगी। कहते हैं कि इसी दौरान शेक्सपियर के ‘मैकबेथ’ का अनुवाद ऋत्विक घटक ने किया और उसका का मंचन भी किया। इसके अलावा रवींद्रनाथ टैगोर लिखित ‘डाकघर’ भी उन्होंने खेला। दीनबंधु मित्रा लिखित नाटक ‘नील दर्पण’ में ऋत्विक घटक के अभिनय की सराहना उस समय खूब हुई थीं।‌ बिजन भट्टाचार्य लिखित नाटक ‘कलंक’ में ऋत्विक घटक ने अभिनय भी किया।

बांग्ला फिल्म ‘छिन्नमूल’ (1950) में ऋत्विक घटक का पहला अभिनय

निमाई घोष निर्देशित बांग्ला फिल्म ‘छिन्नमूल’ (अपरुटेड, 1950) में ऋत्विक घटक ने पहली दफा अभिनय किया। यह पहली भारतीय मूवी है, जो विभाजन (1947) की कहानी कहती है। इस फिल्म में दिखलाया गया है कि किसानों के एक समूह को ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से किस तरह कलकत्ता आने को मजबूर किया गया। इस बांग्ला फिल्म की चर्चा सुनने के बाद इस फिल्म को देखने के लिए रूस के मशहूर निर्देशक वसेवोलोद पुडोवकिन कलकत्ता आए, फिल्म देखी और उन्हें इतना अच्छा लगा कि ‘छिन्नमूल’ के प्रिंट अपने साथ रूस लेते गए। बाद में रूस के 188 सिनेमा हॉल में यह फिल्म रूसी जनता को दिखाई गई। इस बांग्ला फिल्म ‘छिन्नमूल’ में गंगापद बसु, बिजन भट्टाचार्य, ऋत्विक घटक और शोभा सेन (उत्पल दत्त की पत्नी) ने अभिनय किया था। 117 मिनट वाली इस फिल्म की कहानी स्वर्णकमल भट्टाचार्य ने लिखी थीं और निर्देशन निमाई घोष का था।

बतौर निर्देशक पहली फिल्म थीं ‘नागरिक’ (1952/53)

बतौर निर्देशक ऋत्विक घटक की पहली बांग्ला फिल्म थीं ‘नागरिक’ (1952/53)। इस फिल्म की कहानी, पटकथा और निर्देशन ऋत्विक घटक ने किया था। रामानंद सेनगुप्ता ने फोटोग्राफी की थीं और इसमें अभिनय किया था सतींद्र भट्टाचार्य, गीता सोम, केतकी देवी, शोभा सेन, अनिल चट्टोपाध्याय, प्रभा देवी, काली बंद्योपाध्याय ने। इस फिल्म में रमेश जोशी का संपादन देखने लायक है। इस फिल्म में एक प्रेमी जोड़े के अस्तित्व के संघर्षों की कथा है। ऋत्विक घटक की यह फिल्म ‘नागरिक’ कलकत्ता के न्यू एंपायर हॉल में 20 सितंबर, 1977 को रिलीज हुई थीं। ऋत्विक घटक की मृत्यु के 24 साल बाद यह फिल्म रिलीज हुई थीं। वर्ष 1976 में ऋत्विक घटक का निधन हुआ था।

‘अजांत्रिक’ (1958) ऋत्विक घटक की दूसरी फिल्म थीं

 ऋत्विक घटक की दूसरी फीचर फिल्म थीं ‘अजांत्रिक’ (पेथैटिक फैलेसी)। बांग्ला के मशहूर लेखक सुबोध घोष की इसी नाम की कहानी पर बनीं ‘अजांत्रिक’ ऋत्विक घटक की मशहूर फिल्मों में से एक है।‌ इस फिल्म में काली बनर्जी, श्रीमान दीपक, काजल गुप्ता और केष्टो मुखर्जी ने अभिनय किया था। यह फिल्म एक कॉमेडी ड्रामा है। ऋत्विक घटक की इस फिल्म को वर्ष 1959 में वेनिस फिल्म महोत्सव में स्पेशल एंट्री के तौर पर दिखाया गया था। इस फिल्म ‘अजांत्रिक’ में एक टैक्सी ड्राइवर विमल और विमल के संघर्षों की गाथा है। ऋत्विक घटक की यह मंत्रमुग्ध करने वाली फिल्म मानी जाती है।

ऋत्विक घटक ने कुल आठ फीचर फिल्मों का निर्देशन किया

 ऋत्विक घटक ने अपनी छोटी-सी जिंदगी में कुल आठ फीचर फिल्मों का निर्देशन किया था। (1) नागरिक, 1952 (2) अजांत्रिक, 1958 (3) बाड़ी थेके पालिए, 1959 (4) मेरे ढाका तारा, 1960 (5) कोमल गांधार, 1961 (6) सुवर्ण रेखा, 1962 (7) तिताश एकटि नदीर नाम, 1973 (8) जुक्ति तक्को आर गप्पो, 1974)। इन फिल्मों में ‘अजांत्रिक’, ‘मेघे ढाका तारा’ और ‘तिताश एकटि नदीर’ महत्वपूर्ण फिल्में मानी जाती हैं। ऋत्विक घटक ने इन फीचर फिल्मों के अलावा नौ डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई हैं। कुछ अधूरी फिल्में भी रह गई हैं।

दो हिंदी फिल्मों की कहानी भी लिखी थीं घटक ने

ऋत्विक घटक दो हिंदी फिल्मों के साथ भी जुड़े थे। इनमें एक थीं हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘मुसाफिर’ (1957) और दूसरी थीं विमल राय की फिल्म ‘मधुमती’ (1958)। ‘मुसाफिर’ हृषिकेश मुखर्जी की पहली मूवी थीं, जिसमें सुचित्रा सेन, दिलीप कुमार, किशोर कुमार, निरुपा रॉय और नाजिर हुसैन ने अभिनय किया था। राजेंद्र सिंह बेदी ने ‘मुसाफिर’ की कहानी लिखी थीं और ऋत्विक घटक ने पटकथा, जबकि विमल राय की फिल्म ‘मधुमती’ में दिलीप कुमार, वैजयंती माला, प्राण और जॉनी वॉकर ने अभिनय किया था। इस फिल्म की कहानी ऋत्विक घटक ने लिखी थीं। बेस्ट फीचर फिल्म का पुरस्कार भी ‘मधुमती’ को मिला था।

मणि कौल, कुमार शाहनी और सुभाष घई भी थे घटक के शिष्य

ऋत्विक घटक के शिष्यों में कई नाम हैं। जब ऋत्विक घटक पुणे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के प्रिंसिपल थे तब मणि कौल, कुमार शाहनी और सुभाष घई उनके शिष्य थे। यह सन् साठ के दशक की बात है। उस दौरान सुभाष घई ने डिप्लोमा फिल्म ‘फीयर’ में अभिनय भी किया था।‌ मलयाली फिल्मकार जॉन अब्राहम भी ऋत्विक घटक के शिष्य थे। ऋत्विक घटक ने फिल्म निर्देशक सईद अख्तर मिर्जा, अडूर गोपालकृष्णन, केतन मेहता, गिरीश कसरावल्ली जैसे फिल्मकारों को भी अच्छी फिल्में बनाने को प्रोत्साहित किया था।

झारखंड में भी ऋत्विक घटक ने की थीं शूटिंग

  बहुत कम लोगों को पता है फिल्मकार ऋत्विक घटक ने झारखंड में भी अपनी फिल्मों की शूटिंग की थीं। इनमें ‘अजांत्रिक’ (1958) और ‘सुवर्ण रेखा’ (1962) प्रमुख हैं। इन फिल्मों की शूटिंग के लिए ऋत्विक घटक ने रांची, नेतरहाट और रातू के रानीखटंगा गांव को चुना था। रांची के रहने वाले लूथर तिग्गा ने ‘अजांत्रिक’ में काम भी किया था। इन फीचर फिल्मों के अलावा ऋत्विक घटक की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है ‘उरांव’ (1955), जिसकी शूटिंग उन्होंने रांची, रामगढ़ और नेतरहाट में की थीं।

मूर्तिशिल्पी रामकिंकर बैज पर बनीं अधूरी डाक्यूमेंट्री

मृत्यु से कुछ पहले ऋत्विक घटक ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म शुरू की थीं मूर्तिशिल्पी रामकिंकर बैज पर।‌ इस डाक्यूमेंट्री का नाम था ‘रामकिंकर’ (1975)।‌ 16 मिनट की यह डाक्यूमेंट्री अधूरी रह गई है। मोहन विश्वास ने शुरू में ऋत्विक घटक को कुछ आर्थिक मदद की थीं।‌ पर, बाद में इसका काम किसी वजह से रुक गया।

निर्मल और सुनील जाना ने इस डाक्यूमेंट्री की कुछ फोटोग्राफी की थीं।

इंदिरा गांधी पर भी बनाई है शॉर्ट फिल्म

वर्ष 1972 में ऋत्विक घटक ने इंदिरा गांधी पर भी एक शॉर्ट फिल्म बनानी शुरू की थीं, जो अधूरी रह गई।‌ इस फिल्म के वित्तीय मददगार कोई राम दास थे। एके गुरहा और महेंद्र कुमार इस फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कर रहे थे, पर यह पूरी नहीं बन सकी।

‘आमार लेनिन’ (1970) ऋत्विक घटक की है मशहूर डाक्यूमेंट्री

ऋत्विक घटक की एक मशहूर डॉक्यूमेंट्री है ‘आमार लेनिन’ (1970)।‌ सुमंस फिल्म्स के बैनर तले बनी 20 मिनट की इस डाक्यूमेंट्री में अरुण कुमार ने अभिनय किया है। उस समय इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा था। तब सोवियत रूस में यह फिल्म दिखाई गई थी।‌ बाद में अपने देश में इस पर से बंदिश हटा ली गई। इस डॉक्यूमेंट्री की पटकथा और निर्देशन दोनों ऋत्विक घटक का था।

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