धरती को आकाश पुकारे: शरद दत्त का महाप्रयाण
लेखक, फिल्मकार, फिल्म इतिहासकार, प्रोड्यूसर शरद दत्त का 12 फरवरी को निधन हो गया। उन्हे याद कर रहे हैं उनके काफी करीबी रहे हैं डॉ. राजीव श्रीवास्तव, जो खुद एक वरिष्ठ लेखक, कवि-गीतकार, सिने इतिहासवेत्ता, फ़िल्मकार एवं व्याख्याता के तौर पर ख्यात हैं। सिने संगीत पर भारत में एकमात्र ‘पी एच. डी.’, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य-सिनेमा के ‘अज्ञेय सम्मान’ एवं ‘डी पी धूलिया पुरस्कार’ सहित ढेरों अन्य पारितोषिकों-अलंकरणों से विभूषित हैं। अमरीका के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्था ‘ईबेर एंड वेइन पब्लिशिंग’ द्वारा विभिन्न देशों के लगभग तीन सौ श्रेष्ठ अंग्रेजी कविताओं के संकलन में भारत से चयनित एकमात्र कवि हैं। सिने पार्श्वगायिका शमशाद बेगम, पार्श्वगायक मुकेश, संगीतकार कल्याणजी-आनन्दजी पर पुस्तक लेखन एवं फ़िल्म के निर्माण-निर्देशन सहित लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा गँगा में प्रदूषण विषय पर निर्मित-निर्देशित वृतचित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय रही हैं।
महत्वपूर्ण पुस्तकों में ‘सात सुरों का मेला’ [2020], जो कि हिन्दी सिनेमा के 1931 से लेकर 2020 तक के नौ दशकों के गीत-संगीत के विश्लेषण, इतिहास, विकास यात्रा, पड़ाव तथा उपलब्धियों पर साहित्य एवं लोक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में लिखा एक महत्वपूर्ण शोध ग्रन्थ है। पार्श्व गायक मुकेश के ‘’जन्म शती वर्ष के विशेष अवसर पर प्रकाशित ‘भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश’ (2022) डॉ श्रीवास्तव की महत्वपूर्ण पुस्तक है। सिने देशभक्ति गीतों का शोध ग्रन्थ ‘अमृत सिने देश गीत’ (2023) भारत की स्वाधीनता के पच्चहत्तर वर्षों की अवधि में पच्चहत्तर सिने देश भक्ति गीतों की साहित्यिक-सांगीतिक विश्लेषण की नवीनतम पुस्तक है।
हिन्दी सिनेमा के गीत-संगीत विधा के पुरोधा, वरिष्ठ लेखक, फ़िल्मकार तथा दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र के पूर्व निदेशक शरद दत्त ने अपने जीवन राग को पूर्ण विराम देते हुए 12 फ़रवरी 2023 को प्रातः साढ़े नौ बजे मैक्स साकेत अस्पताल, नई दिल्ली में अन्तिम साँस तो ले ली पर उनकी लेखनी से सृजित ढेरों आलेख, पुस्तकें और उनके निर्देशकीय सान्निध्य में निर्मित कई वृत्तचित्रों की निधियाँ कालान्तर तक स्पन्दित होती रहेंगी।
मेरे संग शरद दत्त का सम्पर्क, मेल-मिलाप और घनिष्ठता साढ़े तीन दशक पुरातन रहा है। अस्सी के दशक के उत्तरार्ध और नब्बे के दशक में मेरा जब-जब दिल्ली आगमन होता था तब बंगाली मार्केट, मण्डी हाउस स्थित उनके सरकारी आवास पर मैं ठहरता था। उनके साथ प्रथम भेंट में ही वो मेरे साहित्य, सिनेमा, संगीत और कला-संस्कृति पर किए गए कार्यों से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने मुझे अपने परिवार का एक सदस्य ही बना लिया था। आकाशवाणी और दूरदर्शन में रहते हुए उनके साथ वार्ता और सिने संगीत के व्यक्तित्वों पर दूरदर्शन के लिए कई-कई कार्यक्रमों और वृत्तचित्रों का लेखन एवं शोध का दायित्व उन्होंने मुझे ही दे रखा था। शरद दत्त जब हिन्दी सिनेमा के वरिष्ठतम संगीतकार अनिल बिस्वास पर पुस्तक लेखन कर रहे थे तब उसके लिए चित्रों की उपलब्धता को ले कर वो चिन्तित थे। मैंने अपने सम्पर्क से जब उन्हें ढेरों चित्र उपलब्ध कराए तो वे अत्यधिक प्रसन्न हुए जिसका परिणाम ये हुआ कि आगे की अपनी योजनाओं पर वे मुझसे विस्तार में विमर्श करने लगे। अनिल बिस्वास पर लिखी उनकी पुस्तक ‘ऋतु आए ऋतु जाए’ तथा भारतीय सिनेमा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले नायक-गायक कुन्दन लाल सहगल पर उनकी पुस्तक ‘कुन्दन’ का लेखन साहित्यिक हिन्दी का एक अनूठा कार्य है। इन दोनों ही पुस्तकों को भारत सरकार द्वारा सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ लेखन का ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला है जो शरद की विशिष्ट लेखन शैली का अपूर्व सम्मान है।
सहगल के साथ ही महान गायक मुकेश के प्रति उनका विशेष अनुराग था। मैंने जब गायक मुकेश पर अपनी प्रथम पुस्तक ‘सुरीले सफ़र की कहानी’ लिखी थी तब दिल्ली में उसके विमोचन का कार्यभार शरद दत्त ने ही लिया था और उसका आयोजन भी उन्होंने अपनी देख-रेख में किया था। उन्हीं के सुझाव और प्रेरणा से मैंने गायक मुकेश पर फ़िल्म का निर्माण-निर्देशन किया था जिसे उन्होंने दूरदर्शन पर तब प्रसारित भी किया था।
शरद दत्त एक मिलनसार व्यक्ति थे और लोगों से शीघ्र ही घुल-मिल जाते थे। उनका सरकारी निवास उनके मित्रों के लिए सदैव खुला रहता था। किसी की कोई समस्या हो तो समाधान जैसे उनके समक्ष उपलब्ध होता था। हंसमुख शरद की रचनात्मकता अद्भुत थी। लेखन और निर्देशन दोनों ही उनकी कल्पनाशीलता की अनूठी छवि लिए पढ़ने-देखने वालों को अचम्भित कर देती थी। कई बार ऐसा भी होता था जब प्रतिकूल समय और साधन के अभाव में भी उन्होंने जो उत्कृष्ट परिणाम दिए वो आज भी उनकी प्रशासनिक योग्यता और प्रतिभा को रेखाँकित करता है।
कोरोना काल के पश्चात् विगत एक वर्ष से हम दिल्ली के प्रेस क्लब में प्रायः मिलते रहते थे। प्रसिद्ध शायर-गीतकार साहिर लुधियानवी पर उन्होंने दो माह पूर्व ही पुस्तक लेखन का कार्य सम्पन्न किया था। इस बारे में बात करते हुए उन्होंने मुझे कहा था कि साहिर पर पुस्तक पूरी हो गयी है और मुझे अपने भीतर जिस संतुष्टि की अनुभूति हो रही है उससे मैं बड़ा आनन्दित हूँ। एक लेखक जब अपनी किसी कृति को लेकर इस प्रकार सन्तोष का अनुभव कर रहा हो तो उसके इस कार्य की गुणवत्ता को सहज ही समझा जा सकता है। शरद दत्त के निधन के पश्चात् यह पुस्तक प्रकाशित होगी इसका भान तब किसे था?
भारत विभाजन की त्रासदी के समय जब शरद अपने परिवार के संग पाकिस्तान के झंग जिले से भारत आए तब वो मात्र एक वर्ष के अबोध शिशु थे और उनका परिवार तब दिल्ली में रिफ़्यूजी कैम्प में आ कर रहने लगा था। यहीं रहते हुए उन्हें पहली बार भारतीय सिने संगीत का स्वर घुट्टी में मिला। अपने बालपन की स्मृतियों के सम्बन्ध में उन्होंने मुझे एक बार बताया था कि तब इस कैम्प में लाउड स्पीकर पर फ़िल्मी गीत बजा करते थे जिसमें से एक गीत दिलीप कुमार की तब की प्रसिद्ध फ़िल्म ‘मेला’ का गायक मुकेश के स्वर में खूब बजा करता था – ‘धरती को आकाश पुकारे आजा आजा प्रेम दुआरे, इस दुनिया को छोड़ के प्यारे, झूठे बन्धन तोड़ के सारे, आना ही होगा’।
18 जुलाई 1946 को झंग में जन्मे शरद दत्त ने अपने जीवन के 76 वर्ष 06 माह और 24 दिनों की अवधि व्यतीत करके अब उस आकाशलोक में जा चुके हैं जिसकी पुकार उन्होंने अपने शैशव काल में सुनी थी – आजा आजा प्रेम दुआरे।
जब शरद दत्त ने ‘मेला’ फिल्म के गीत ‘धरती को आकाश पुकारे’ और अपने बचपन के रिश्ते की कहानी सुनाई