Category: News/ Updates

कान 2024 (2): क्लासिक खंड में श्याम बेनेगल की ‘मंथन’

‘मंथन’ भारत की पहली फिल्म थी जो क्राउड फंडिंग से बनी थी। उस समय गुजरात के पांच लाख किसानों ने दो दो रुपए का चंदा देकर दस लाख रुपए जमा किए थे। कान में ‘कान क्लासिक’ खंड के तहत इसका प्रदर्शन निस्संदेह भारतीय सिनेमा के लिए गौरव की बात है।

Meryl Streep in Cannes

कान 2024 (1): कान में पहली बार 10 भारतीय फिल्में

फ्रांस में होने वाला 77वां कान फिल्म समारोह शुरू हो चुका है। इस बार के फेस्टिवल की एक खास बात ये भी है कि इतिहास में पहली बार दस भारतीय फिल्में आफिशियल सेलेक्शन में दिखाई जा रही है। सीधे कान से पहली रिपोर्ट…

Rukmavati Ki Haveli

“औरत की योनि में जन्म लेना इस दुनिया की सबसे बड़ी सज़ा है”

मौत के मातम के नाम पर अपनी जवानी को बर्बाद होते देने वाली बहनें औरतें बनने को उतावली हैं पर उनपर ध्वस्त होती खानदानी विरासत को बचाने के लिए  तानाशाह बन जाने वाली मां का चौकन्ना पहरा है। गोविंद निहलानी की ‘रुक्मावती की हवेली’ की समीक्षा

Tarkovsky

तारकोवस्की का ‘नॉस्टैल्जिया’: माथे की फूली हुई एक नस

रूस का एक कवि देश के एक पूर्वज संगीतकार पर किताब लिखना चाहता है। इसलिए वह इटली में उन स्‍थानों की यात्रा करता है जहाँ संगीतकार अपने अंतिम दिनों में रहा। उन जगहों को ऐंद्रिक ढंग से छूना चाहता है जिन्हें संगीतकार ने स्पर्श किया। सुविधा के लिए एक अनुवादक महिला उसके साथ है। लेकिन कवि अचानक अपने में गुम हो गया है। अपने देश और परिवार की स्मृति ने उसे घेर लिया है। तारकोवस्की की फिल्म ‘नॉस्टैल्जिया’ शांत पहाड़ी क्षेत्र में बहती नदी के पानी की यात्रा है, जो ऊपरसे जितनी शांत दिखती है, भीतर से उतनी ही हलचल लिए होती है।

मुग़ल ए आज़म 5: प्यार किया तो डरना क्या…

‘मुग़ले आज़म’ में न्याय का प्रतीक तराजू साझा संस्कृति के प्रतीकों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। फ़िल्म में इस तराजू को किले की खुली जगह पर रखा बताया जाता है और उसका आकार इतना बड़ा होता है कि अकबर भी उसके सामने बौने नज़र आते हैं। इस तरह फ़िल्मकार शायद यह बताना चाहता है कि इंसाफ का यह तराजू किसी राजा की हैसियत से बहुत बड़ा है। अकबर की नज़र में इंसाफ की कीमत आदमी की निजी सत्ता से कहीं ज्यादा है।

लोक कलाओं की दुर्दशा: ‘द लिपस्टिक बॉय’ के बहाने

उदय शंकर,केलुचरण महापात्र, राम गोपाल,बिरजू महाराज,गोपी कृष्ण जैसे नामचीन कलाकारों ने लंबे संघर्ष के बाद कला जगत में अपनी प्रतिष्ठाजनक जगह बना ली। पर पुरुष नर्तक होने के कारण उन्हें जिस तरह समाज, जाति और परिवार की उपेक्षा,तिरस्कार और प्रताड़ना सहनी पड़ी उस के बारे में मुंह पर ताला ही लगा कर रखा गया। इन्हें जातिगत और लिंग आधारित अपमान दोनों झेलने पड़े।

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‘आदमी और औरत’: तपन सिन्हा की नजर से

सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ सबसे प्रभावशाली बंगाली फ़िल्मकारो की चौकड़ी बनाने वाले तपन सिन्हा ने यूं तो हिन्दी में कम फ़िल्में बनाई लेकिन उनकी कई फ़िल्मों का हिन्दी रूपांतरण अक्सर हुआ। हिन्दी में “एक डॉक्टर की मौत” उनकी यादगार फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म भी ऐसी ही बिंबों से भरी, एक कहानी है, जो ऊपरी तौर पर सीधी-साधी होकर भी अनेक जटिल सवाल  हमारे सामने  उठाती है।

Celebrating Diversity and Inclusivity in Cinema: 5th Edition of CIFFI

Delhi Metropolitan Education Media School Noida with Deakin University, Melbourne, Australia and the University of Nottingham, China Campus inaugurated a three-day international film festival CIFFI (Cineaste International Film Festival of India) on 7th Feb 2024.

एक दक्ष अभिनेत्री, जिनका नाम था श्रीला मजुमदार

श्रीला मजुमदार असल में निर्देशक मृणाल सेन की खोज थीं। वह कलकत्ता के बंगबासी कॉलेज से अभी ग्रेजुएट होकर निकली ही थीं और बांग्ला नाटक के रिहर्सल वगैरह में हिस्सा ले रही थी तभी निर्देशक मृणाल सेन की नज़र एक रिहर्सल के दौरान श्रीला मजुमदार पर पड़ी ‌और सांवली रंग की श्रीला को मृणाल सेन ने अपनी अगली फिल्म के लिए चुन लिया।

10वां कोलकाता अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव

बीते दशकों में सिनेमा में बाल फिल्मों का ज़बरदस्त ढंग से लोप होता गया है… । बच्चों की फिल्मों के नाम का कोई जॉनरा नहीं बचा है… ऐसे में कोलकाता इंटरनेशनल चिल्ड्रेन फिल्म फेस्टिवल का लगातार आयोजन एक सुखद समाचार है।