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विज्ञान के उद्देश्य और वैज्ञानिक की नैतिकता का मुद्दा उठाती है ‘ऑपेनहाइमर’

क्रिस्टोफ़र नोलन ने अपनी फिल्म में ग्रीक पुराण कथा और गीता के कर्मवाद को गूँथ कर परमाणु बम बनाने और उसके इस्तेमाल को लेकर ऑपेनहाइमर के बौद्धिक कौशल, मेहनत, महत्वाकांक्षा, प्रेम, निराशा, नैतिक द्वंद्व, अपराध बोध और ऊहापोह को बहुत शानदार अंदाज में पेश किया है।एटम बम की चेन रियेक्शन की आशंका और उससे जुड़ा नैतिक द्वंद्व ऑपेनहाइमर के मन में थे जिसे मुख्य भूमिका निभाने वाले किलियन मर्फी ने बहुत असरदार तरीके से उभारा है। 

‘वश’: अतृप्त आत्मा, वासना वाले ‘हॉरर फॉर्मूलों’ का रीप्ले

भारतीय मेनस्ट्रीम सिनेमा में हॉरर फिल्मों के कंटेंट और ट्रीटमेंट को लेकर नई सोच अब भी सिरे से नदारद है। इस लिहाज़ से नई हॉरर फिल्म ‘वश’ भी इसी सिलसिले की एक कड़ी लगती है।

मुग़ले आज़मः शहंशाह अकबर के ‘राष्ट्रवाद’ की महागाथा-3

यह बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है कि फ़िल्म में बादशाह अकबर के साथ घटी घटनाएं ऐतिहासिक रूप में सत्य है या नहीं। महत्त्वपूर्ण यह है कि यह दंतकथा अकबर जैसे महान बादशाह के बारे में है जो इतिहास में अपनी उदारता और सहिष्णुता के लिए प्रख्यात है और जिसने सारे देश को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया था और जो इस सच्चाई को समझ चुका था कि इस देश पर शासन तभी किया जा सकता है जब यहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों के बीच बिना किसी तरह का भेदभाव किए व्यवहार किया जाए।

Mughal e Azam

मुग़ले आज़मः इतिहास, दंतकथा और कल्पना का अंतर मिटाने वाली फिल्म-2

मुग़ले आज़म फ़िल्म में जिस हिंदुस्तान को पेश किया गया है उसके पीछे लोकतांत्रिक भारत के प्रति फ़िल्मकार की आस्था व्यक्त हुई है। यह आस्था भारत की मिलीजुली संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा में भी निहित है। फ़िल्मकार के इस नज़रिए को समझे बिना हम ‘मुग़ले आज़म’ को एक दंतकथा पर बनी प्रेमकहानी मात्र समझने की भूल करेंगे।

Cine Book Review: सिने बुक रिव्यू के बारे में

‘न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन’ सिनेमा से जुड़ी गंभीर पुस्तकों के बारे में जानकारी देने और उनकी विषयवस्तु से परिचित कराने के लिए ऐसी नई पुस्तकों की (पुरानी और महत्वपूर्ण पुस्तकों की भी) नियमित रुप से जानकारी और समीक्षा प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहा है।

Mughal e Azam

मुग़ले आज़म: भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा महाकाव्य- 1

के आसिफ की ‘मुग़ले आज़म’ जिस विराट महाकाव्यात्मक कैनवास को लेकर बनाई गई थी उसे प्रायः समझा ही नहीं गया। ‘मुग़ले आज़म’ को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि हम इस बात को ध्यान में नहीं रखते कि यह फिल्म विभाजन की भयावह त्रासदी से उभरते देश के एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनने के आरंभिक सालों की समानांतर रचना है।

‘आदिपुरुष’ की प्रमोशनल स्ट्रेटजी के मायने

हाल ही में जारी किये गये फिल्म ‘आदिपुरुष’ के ट्रेलर में भगवान राम के मुंह से निकलने वाले एक संवाद में कहा जा रहा है, ‘आज मेरे लिए मत लड़ना, उस दिन के लिए लड़ना जब भारत की किसी बेटी पर हाथ डालने से पहले दुराचारी तुम्हारा पौरुष याद करने के पहले थर्रा उठेगा।

हंसल मेहता का ‘स्कूप’: चौथे खंबे के अंधकूप की अंतर्कथा

हंसल मेहता की नई वेब सीरीज़ ‘स्कूप’ में खुद को तीसमारखां समझने वाले तमाम पत्रकारों के लिए सबक है कि खबर देने वाले हर सूत्र का अपना एजेंडा होता है। खबरें योजनाबद्घ तरीके से प्लांट कराई जाती हैं। सावधान नहीं रहे तो मोहरा बनने का खतरा रहता है।

Ab Dilli Dur Nahin

‘अब दिल्ली दूर नहीं’: IAS बनने दिल्ली आए बिहारी छात्र की कहानी

फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ एक ऐसे ही सवर्ण बिहारी युवक अभय शुक्ला की कहानी है जिसके पिता गांव में किसानी करते हैं और मां दूसरों के घरों में काम करती है।

मृणाल सेन: कम्फ़र्ट ज़ोन लाँघने वाले फ़िल्मकार

मृणाल सेन स्व-शिक्षित तथा स्व-प्रशिक्षित फ़िल्म निर्देशक थे। अपनी फ़िल्म के डॉयलॉग लिखते, एडिटिंग में प्रयोग करते थे। उनका जीवन दर्शन था, ‘पृथ्वी टूट रही है, जल रही है, छिन्न-भिन्न हो रही है। तब भी मनुष्य बचा रहता है, ममत्व, प्यार और संवेदना के कारण।’